जो अपने को नहीं भूल सकता उसे मरना पडता है

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एक बार की बात है. युनान में एक बहुत बडा मूर्तिकार हुआ. उस मूर्तिकार की बडी बहूत प्रशंसा थी सारे दूर-दूर के देशों तक. और लोग कहते थे कि अगर उसकी मूर्ति रखी हो बनी हुई और जिस आदमी की उसने मूर्ति बनाई है वह आदमी भी असके पडोस में खडा हो जाए श्वास बंद करके, तो बताना मुश्किल है कि मूल कौन है और मूर्ति कौन है. दोनों एक से मालूम होने लगते हैं.

उस मूर्तिकार की मौत करीब आई. तो उसने सोचा कि मौत को धोखा क्यों न दे दूं ? उसने अपनी ही ग्यारह मूर्तिया बना कर तैयार कर लीं और उन ग्यारह मूर्तिया के साथ छिप कर खडा हो गया.

मौत भीतर घुसी उसने देखा वहां बारह एक जैसे लोग हैं. वह बहुत मुश्किल में पड गई होगी ? एक को लेने आई थी, बारह लोग थे, किसको ले जाए ? और फिर कौन असली है ? वह वापस लोटी और उसने परमात्मा से कहा कि मैं बहुत मुश्किल में पड गई, वहां बारह एक जैसे लोग है. असली को कैसे खोजूं ? परमात्मा ने उसके कान में एक सुत्र कहा. और कहा, इसे सदा याद रखना. जब भी असली को खोजना हो, इससे खोज लेना. यह तरकीब है असली को खोजने की.

मौत वापस लोटी, उस कमरे के भीतर गई, उसने मूर्तियां को देखा और कहा मूर्तिया बहुत सुंदर बनी है, सिर्फ एक भूल हो गई. वह जो चित्रकार था वह बोला कौन सी भूल ? उस मृत्यु ने कहा, यही कि तुम अपने को नहीं भूल सकते.

बाहर आ जाओं और परमात्मा ने मुझे कहा कि जो अपने को नहीं भूल सकता उसे तो मरना पडेगा और जो अपने को भूल जाए उसे मारने का कोई उपाय नहीं, वह अमृत को उपलब्ध हो जाता है.

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