बहुत समय पहले की बात है। शेरगढ़ में राजा वीरप्रताप का शासन था। राजा शिकार के बहुत शौकीन थे।एक दिन वे अपने कुछ विश्वसनीय सैनिकों के साथ दूर जंगल में शिकार के लिये निकले। शिकार की खोज में कई घंटे बीत गये लेकिन एक भी जानवर नहीं दिखा। साथ आये सैनिक थक कर एक पेड़ की छाँव में बैठ गये। लेकिन राजा ने हार नहीं मानी और शिकार की खोज में अकेले ही आगे बढते रहे। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लायी और कुछ दूर जाने के बाद एक झाड़ी में दो हिरन के छोटे-छोटे बच्चे बैठे दिखायी दिये। राजा वीरप्रताप अपने नाम के अनुरूप ही वीर थे, उन्होंने देर ना करते हुए एक ही तीर से दोनों हिरन के बच्चे को मार गिराया। मरे हुये हिरन के बच्चों को उठा कर अपने घोड़े पर रखा और अपने साथ आये सैनिकों को ढूढ़ने लगे। पर शिकार के चक्कर में राजा अपने सैनिकों से काफी दूर आ गये थे।अंधेरे का आगोस धीरे-धीरे बढ़ाता जा रहा था। जिससे राजा अपने वापस जाने के रास्ते को सही से पहचान नहीं पा रहे थे। अंधेरे में बहुत दूर जाने पर उन्हें एक कुटिया दिखाई पडी। वे कुटिया के अन्दर मरे हुये हिरन के बच्चों को पकड़े हुये पहुँचे। अन्दर एक साधु ध्यान लगाये बैठे हुये थे। राजा ने उन्हें श्रद्धा सहित दंडवत प्रणाम किया। फिर बैठते हुए बोले – बाबा मैं शिकार पर अपने सैनिकों के साथ आया था लेकिन अंधेरे में रास्ता भूलने के कारण उनसे बिछड़ गया हूँ। मुझे शेरगढ़ का रास्ता बताने की कृपा करें। साधू ने राजा के पास पड़े मरे हुये हिरन के बच्चों को देखते हुए उदास उदास स्वर में बोलें – बेटा, मैं तो जीवन में सिर्फ दो ही रास्ते जानता हूँ। एक दया-धर्म का रास्ता है जो सीधे स्वर्ग की ओर ले जाता है।और दूसरा रास्ता हिंसा का है,जो नर्क की ओर जाता हैं। अब यह तुम्हारी मर्जी है। दोनों में से तुम्हें जो रास्ता अच्छा लगे,उसे पकड़ लो। राजा समझ गये कि उन्होंने निर्दोष हिरन के बच्चों को मार कर पाप किया है। उन्होंने साधू से क्षमा माँगी और कभी भी जीव हत्या ना करने का प्रण लिया।साधु ने राजा को जीवन में सही रास्ते पर लौटता देख कर शेरगढ़ का सही रास्ता बता दिया। हमें भी जीवों पर दया करना चाहिये। सभी को प्यारा व्यवहार अच्छा लगता है चाहे वे आदमी हों या जानवर। प्यार से हिंसक से हिंसक शेर को भी वश में किया जा सकता है।
जीवन के दो रस्ते
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