जब मेरी बढ़ती हुई बेटी ने पूछा कि क्या भगवान सिर्फ एक कहानी है, तो मैंने क्यों कहा हाँ…(एक नैतिक तर्कवादी माँ की कहानी )

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मेरी बेटी ने एक दिन दोपहर को जो की प्रीस्कूली छात्रा थी घर जाने के रास्ते में कहा; “माँ मुझे भगवान के बारे में बताओ,”

एक मिनट पहले हम FM रेडियो से जो गाना आता है कार में बैठे वह गुन गुनाने में लगे हुए थे, अचानक उसकी जिज्ञासा जाग उठा । “ठीक है,” मैंने कहा, जैसा कि मैंने अपने विचार इकट्ठा किए थे कहना सुरु किया, और रेडियो को बंद कर दिया; “भगवान एक कहानी है”  जैसे सांता एक कहानी है जो कुछ लोगों का मानना है।” (यह सही है, हम अपने घर पर सांता के वारे में भी नहीं सिखाते हैं)

“कुछ लोग सोचते हैं कि भगवान एक आदमी या एक औरत है और कुछ का मानना है वह निराकार है, जिसने दुनिया बनाई है और सबका नियत्रण उनके हात में है,” मेरी कोसिस एक कठिन बिषय को सरल कर के एक ३ साल की बच्ची को जो समझाना था।

“क्या आपको लगता है कि भगवान सिर्फ एक कहानी है?”

में एक अज्ञेयवादी से नास्तिकता की ओर झुकाव वाला जवाब दिया, “मैं करता हूं, मेंने कहा बेटी में भी आस्तिक हूँ क्यों के मेरी आस्था सत्य, तर्कवाद और विज्ञान पर है ना की अंध विश्वास पर । में वह आस्तिक नहीं हूँ जो भगवान के ऊपर आस्था रखनेवाला को ही कहते हैं । आस्तिक का मतलब किसी भी सोच के ऊपर विश्वास या आस्था रखना है और नास्तिक का मतलब कोई भी सोच के ऊपर विश्वास पर आस्था नहीं रखना; इसलिए जो सत्य, तर्कवाद और विज्ञान पर आस्था नहीं रखते वह भी इन विषयों का नास्तिक हैं । लेकिन आप जो कुछ भी चाहते हैं उस पर विश्वास कर सकते हैं, लेकिन आप को उनकी जानकारी सही होनी चाहिए, कोई कुछ भी बोल दे उस को विश्वास करने से पहले उस इंसान को और उनका कहा हुआ बात विश्वास की योग्य है की नहीं अपनी ज्ञान और तर्क से सत्य की कसौटी पर तोलना चाहिए जो की आप की सूझ बुझ और जानकारी बढ़ने से आती है ।

मेरे पति और मैं अपनी बेटी को धर्म से बचाने के लिए अपने सोच से बाहर नहीं जाते – सहनशीलता और समावेशिता हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वह कभी कभी  एक ईसाई चर्च से संबधित एक सार्वभौमिक प्रीस्कूल प्रतियोगिता में भी भाग लेती है (क्योंकि उनका कार्यक्रम शानदार है), उसने अपने जन्म के बाद अपने पहले पड़ाव की दिनों में भाग लिया था, और उसने मेरे साथ अपने समुदाय में एक मस्जिद को साफ करने में मदद करने के लिए गयी हुई थी जिसको बहुत पहले  बर्बाद कर दिया गया था । जैसे ही वह बड़ी होती जाती है, हम अपनी बेटी को विभिन्न आस्था प्रणालियों यानी धर्मों से परिचित करना जारी रखते हैं  – वैसे ही हम उससे सभी संस्कृतियों के सामने उनके अंध विश्वास को बेनकाब करने का प्रयास करते रहते हैं; और हम उसकी व्यवहारिक, नैतिक और तार्किक विश्वास प्रणाली को बिकसित करने का हर प्रयास करते हैं ।

हम बाइबल बेल्ट के उत्तरी क्षेत्र में रहते हैं, जहां PEW डेटा के मुताबिक 83% आबादी “पूरी तरह से निश्चित” या “काफी निश्चित” है कि ईश्वर मौजूद है । हम समय-समय पर साथियों या परिचितों से पूछा जाता है कि कैसे, धर्म की पहचान के बिना, हम अपनी बेटी का चरित्र या उसकी नैतिक ज्ञान की विकाश कर पाएंगे? लेकिन नैतिकता – चाहे आंतरिक या बाह्य – किसी जीवन के खतरे या वादे पर या बचाए जाने का वादा नहीं करता है। असल में, अगर किसी के पास एक अच्छा व्यक्ति होने का एकमात्र कारण है, तो वह मुझे परेशान करता है और में उस को मूढ़ता समझती हूँ।

हम समुदाय का हिस्सा बनने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि, अक्सर अपने बच्चे के साथ दूसरों के लिए और खुद के लिए,  जो  हमारे या उनके  शब्द और कार्य है वह हमारे आस-पास के लोगों को प्रभावित करते हैं । हम दूसरों की जरूरतों का समर्थन करने के तरीके के बारे में बात करते हैं, और हमारे पड़ोस और पर्यावरण के अच्छे कर्मचारियों के लिए क्या अच्छा होता है या अच्छा होना चाहिए उसकी ज्ञान विकाश करने में मदद करते हैं । इसी तरह, मानवतावाद और परिणामीवाद जैसे धर्मनिरपेक्ष नैतिक ढांचे ने इस धारणा को लंबे समय से माना है कि हम नैतिक प्राणियां नहीं बन सकते हैं जब तक कि हम ईश्वर को ना नकारें । नैतिकता और मानवतावाद केलिए ये जरूरी नहीं की भगवान या कोई धर्म पर विस्वाश करो या उनके भीड़ में शामिल हो जाओ ।

लेकिन यह सच है कि धर्म अन्धविसश्वाश के साथ साथ कुछ आराम भी प्रदान करता है, कभी-कभी मैं चाहता हूं कि मैं अपनी बेटी के साथ साझा कर सकूं। मेरी माँ, में एक मां बनने से डेढ़ साल पहले निधन हो गई, इसलिए जब मेरे प्रीस्कूलर बेटी पूछती है कि जब हम मर जाते हैं तो हमारे साथ क्या होता है? मुझ पर उसे बिना धर्म की आधार पर मौत की अर्थ बताने की जम्मेदारी आन पड़ती है। में उसको बताती हूँ  “हमारे शरीर पृथ्वी को समर्पित हो जाता है,”  – वैसे ही कुछ उनके पुनर्जन्म के विस्वाश  के जैसे; मेरा मानना है कि यह उन छोटे तरीकों में से एक है जिसे हम शायद उन लोगों से जुड़े रहें जिन्हें हम पीछे छोड़ते हैं।

जैसे ही वह बढ़ती जाती है और अनिवार्य रूप से कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि अपने माता-पिता की मृत्यु, शायद वह जवाब उसके लिए पर्याप्त होगा या शायद नहीं होगा। हमारा जिम्मेदारी केवल उसे अच्छी रस्ते दिखाने है, जैसे की कैसे धर्म के बारे में गंभीर रूप से सोचने के लिए अपने आप को तैयार करें- और बाकी सब कुछ के बारे में भी – और उसके बाद उन विषयों के बारे में, जो सही लगता हो, और कैसे सत्य की आधार पर अपना राय बनाये।

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