चाणक्य नीति : नवां अध्याय

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1. यदि तुम पाप के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो. इन सब को छोड़कर सहनशीलता, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य का अमृत पियो.

2. वो शातिर बेईमान लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को उजागर करते हुए फिरते है, वह उसी तरह नष्ट हो जाते है जिस तरह कोई साप चीटियों के टीलों में जा कर मर जाता है.

3. कोई संदेशवाहक आकाश में जा नहीं सकता और आकाश से कोई खबर आ नहीं सकती. ना आज तक ऊपर रहने वाले निवासियों की कोई आवाज़ सुनी है, ना ही उनके साथ कोई संपर्क स्थापित किया जा सकता है. इसीलिए वह ब्राह्मण जो भविष्य वाणी करता है, उसे मुर्ख और पाखंड मानना चाहिए.

4. इन सातो को जगा दे यदि ये सो जाए…
१. विद्यार्थी,
२. सेवक,
३. पथिक,
४. भूखा आदमी,
५. डरा हुआ आदमी,
६. खजाने का रक्षक,
७. कोषाध्यक्ष.

5. इन सातो को नींद से नहीं जगाना चाहिए…
१. साप,
२. राजा,
३. बाघ,
४. डंख करने वाला कीड़ा,
५. छोटा बच्चा,
६. दुसरो का कुत्ता,
७. मुर्ख.

6. जिसके डाटने से सामने वाले के मन में डर नहीं पैदा होता और प्रसन्न होने के बाद जो सामने वाले को कुछ देता नहीं है. वो ना किसी की रक्षा कर सकता है ना किसी को नियंत्रित कर सकता है. ऐसा आदमी भला क्या कर सकता है.

7. यदि नाग अपना फना खड़ा करे तो भले ही वह जहरीला ना हो तो भी उसका यह करना सामने वाले के मन में डर पैदा करने को पर्याप्त है. यहाँ यह बात कोई माइना नहीं रखती की वह जहरीला है की नहीं.

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