अकबर बीरबल से तरह-तरह के अजीबो-गरीब प्रश्न पूछा करते थे. कुछ प्रश्न ऐसे भी होते थे जो वह बीरबल की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए पुछते थे. एक बार बादशाह अकबर बीरबल से बोले – बीरबल इस दुनिया में कोई अमीर है कोई गरीब हैं ऐसा क्यों होता है ?
सब लोग ईश्वर को परमपिता कहते हैं इस नाते सभी आदमी उनके पुत्र ही हुए. पिता अपने बच्चों को सदा खुशाल देखना चाहता हैं फिर ईश्वर परमपिता होकर क्यों किसी को आराम का पुतला बनाता हैं और किसी को मुट्ठीभर अनाज के लिए दर-दर भटकाता है ?
आलमपनाह अगर ईश्वर ऐसा न करे तो उसकी चल ही नहीं सकती. वैसे तो दुनिया में पांच पिता कहे गये हैं इस नाते आप भी अपनी प्रजा के पिता हे फिर आप किसी को “हजार” किसी को “पांच-सौं” किसी को पचास तो किसी को सिर्फ “पांच-सांत रुपये” ही वेतन देते है.
जबकि एक महीने तक आप सभी से सख्ती से काम लेते हैं. ऐसा क्यो ? सभी को एक ही नजर से क्यो नहीं देखते ? बीरबल ने बादषाह के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय प्रश्न किया बादशाह तुरन्त कोई भी जवाब नहीं दे सके उल्टे सोच में पड गये.
बादशाह को इस तरह खयालों में खोया देखकर बीरबल बोले – “जो जैसा काम करता हें उसे वैसी ही मजदूरी मिलती है.” और इसी पर दुनिया का कारोबार चलता है. अगर ऐसा न हो तो यह दुनिया चल ही नहीं सकती. इसी तरह ईश्वर का न्याय होता है.
वह कभी नही चाहता कि दुनिया के लोग दुख उठाये ईश्वर हमेशा उन्हें मुष्किलों से बचाता है लेकिन जो कोई उसकी बात नहीं मानता उसे सजा भूगतनी पडती हे. जो जैसा काम करता हैं उसे वैसा ही फल मिलता है. जो ज्यादा मेहनत करता है वह धनवान बनता है जो कम काम करता हैं वह गरीब होता है. इसमें ईष्वर का क्या दोष ?
अच्छी तरह से ध्यान दें: अगर किसी कहानी में वैज्ञानिक आधार और यौक्तिकता नहीं है तो इसे सत्य मानना या नैतिक ज्ञान समझना मूर्खता है । हालांकि कुछ कहानियाँ मनोरंजन और नीति ज्ञान के लिए क्यों न लिखा गया हो लेकिन ये ज्यादातर वर्ण व्यवस्था यानि जात पात, अंध विश्वास, तर्क हीनता, अज्ञानता, नफरत, धर्म, हिंसा और व्यक्ति विशेष के प्रचार और प्रसार के उद्देश्य से लिखागया धूर्त कहानियां है इसलिए ये कहानियाँ आपको पढ़ के उसके सच्चाई भी आप को जान ने की जरूरत है । जैसे अच्छा खाना एक अच्छा स्वास्थ्य बनता है, वैसे ही अच्छी ज्ञान अच्छी दिमाग बनाते हैं । अगर किसी व्यक्ति का काल्पनिक और मानसिक स्तर अगर वास्तविकता के साथ समानता नहीं है और अंध विश्वास के अधीन होकर अज्ञानता का अधिकारी बन जाये तो उसको मानसिक विकृति कहते हैं ।