गोलू एक गरीब लडका था। उसके घर में सिर्फ उसकी माँ और वह खुद दो ही सदस्य थे। गोलू स्कूल जाता और आकर मेहनत मजदूरी का काम करता। उसकी पढाई भी एक दिन छूट गई। गोलू की माँ हमेशा गोलू को अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनाती । वह कहती थी कि भगवान अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों की जरूर सुनता है। गोलू भी माँ की बताई हर बात पर अमल करता । गोलू एक सेठ के यहां नौकरी करने लगा । सेठ का काफी बड़ा कारोबार था। गोलू बड़े मन से काम करता और वो भी पूरी ईमानदारी के साथ, इसलिए सेठ का कारोबार भी दिनरात तरक्की कर रहा था। गोलू के कारण अन्य नौकर भी कामचोरी से घबराने लगे। एक दिन सेठ ने गोलू को एक बैग दिया और उसे अपने घर देने को कहा, गोलू बैग लेकर जा रहा था कि उसे बोझ लगने लगा, उसने सोचा कि खोलकर देखा जाए आखिर क्या है।
लेकिन दूसरे पल उसने सोचा कि किसी गैर की अमानत के साथ छेड़छाड ठीक नहीं । अगले दिन सेठ ने गोलू को बुलाया और कहा, “गोलू, हमने कल तुम्हारी परीक्षा ली जिसमें तुम खरे निकले, अगर तुम नकली गहनों से भरा बैग लेकर भाग जाते तो बेईमान भी कहलाते और कुछ हाथ भी नही लगता पर तुमने सही सलामत बैग घर पहुँचाकर अपनी ईमानदारी का सुबूत दिया है आज से हम तुम्हें अपने कारोबार में एक नौकर की नहीं बल्कि मालिक की हैसियत से रखेंगे । आज से तुम हमारे कारोबार के मैनेजर होगे।” यह सुनकर गोलू की आँखों मैं खुशी के आँसू आ गए। उसे उसकी ईमानदारी का इनाम जो मिल चुका था।