सुद्धोदन के पिता के गुरु असित सांसारिक भोगों से विरक्त एक सिद्ध पुरुष थे । वृद्धावस्था में सुखों का परित्याग कर वे एक निर्जन वन में कुटिया बना कर साधनाओं में लीन रहते। सिद्धार्था गौतम की जन्म सूचना से उनकी खुशी की सीमा न रही और वे तत्काल कपिलवस्तु पहुँचे वहाँ पहुँचकर उन्होंने जब बालक को उठाकर अपनी गोद में रखा और अपनी आँखों के निकट लाकर देखा तो उनकी आँखों में असीम खुशी की लहर दौड़ पड़ी । फिर कुछ ही क्षणों में वहाँ अवसाद के बादल मंडराने लगे। पिता सुद्धोदन ने जब उनके इन विचित्र भावों का कारण पूछा तो उन्होंने कहा, “यह बालक बुद्ध बनेगा । इसलिए मैं प्रसन्न हूँ । किन्तु इसके बुद्धत्व-दर्शन का सौभाग्य मुझे अप्राप्य है । मैं उतने दिनों तक जीवित नहीं रहूँगा। अत: मैं खिन्न हूँ।”
कुछ दिनों के पश्चात् असित ने अपनी बहन के पुत्र नालक को बुद्ध-देशनाओं को ग्रहण करने की पूर्ण शिक्षा दी।