संत राबियां के पास हसन ठहरा । दोनों बैठे थे एक आदमी आया । उस आदमी ने हसन के चरणों में सोने की अशर्फियां रखीं । हसन तो एक दम नाराज हो गया । उसने कहा तू यह सोना लेकर यहां क्यों आया ? सोना मिटटी है, धूल है । हटा यहां से सोने को । राबियां हंसी । हसन ने पूछा क्यों हस्ती हो ? राबिया ने कहा हसन तो तुम्हारा सोने से मोह अभी तक गया नहीं ?
सोने से मोह हसन ने कहा, मोह नहीं हैं इसिलए तो में इतना चिल्लाया की हटा यहां से । राबियां ने कहा मोह न होता तो चिल्लाते ही क्यों ? अगर मिटटी ही है सोना, तो मिटटी तो बहुत पढ़ी है तुम्हारे आस पास तुम नहीं चिल्ला रहे हो । यह आदमी थोड़ी और मिटटी ले आया तो क्यों चिल्लाना ? इतने आग बबूला क्यों हो गए, इतने उत्तेजित क्यों हो गए ? यह उत्तेजना बताती हैं की अभी भीतर डर है । यह उत्तेजना बताती हैं की दबा लिया हैं सोने के मोह को मिटा नहीं हैं । नहीं तो क्या इसमें उत्तेजित होने की बात हैं ?
इस आदमी को तो देखों । यह बेचारा गरीब हैं इसके पास सोने के सिवाय कुछ भी नहीं है । यह बहुत गरीब हैं इस गरीब को ऐसे मत धुतकरो यह इतना गरीब है और कुछ देना चाहता है । इसका तुमसे लगाव है और सोने के अलावा इसके पास और कुछ नहीं हैं । राबियां ने हसन से कहा उस गरीब को देख वह किस भाव से लेकर आया हैं । हसन ने कहा राबियां तूने मुझे खूब चेताया बात मेरी समझ में आ गई । सचमुच मैने सोने का जो मोह हैं, उसे दबा लिया है । यह मिटा नहीं हैं ।
सदगुरु वही हैं जो सच में जाग गया हैं । जो जाग गया है, तुमने क्या किया हैं इससे कोई निंदा उसके मन में पैदा नहीं होगी । और ना ही तुम्हें नरक भेज देगा न तुम्हे डरायेगा । क्योंकि सदगुरु तुम्हें देखता हैं । तुम्हारे कृत्यों को नहीं । कृत्यों का कोई मूल्य नहीं हैं । कृत्य तो माया हैं । तुमने जो किया उसका कोई मूल्य नहीं हैं । तुम जो हो वही मूल्यवान हैं ।