गौतम बुद्ध के पिता सुद्धोदन थे। उनकी माता का नाम कच्चाना था । सुद्धोदन के चार सहोदर भाई द्योतदन, सक्कोदन, सुक्कोदन तथा अमितोदन थे । उनकी दो बहनें थी- अमिता और पमिता।
सुद्धोदन को जैसे ही बुद्ध की सम्बोधि प्राप्ति की सूचना मिली और उनके गौरव पता चला तो उन्होंने तत्काल सिपाहियों के साथ एक दूत बुद्ध को बुलाने के लिए भेजा। किन्तु उनके सारे अनुचर वापिस न लौट बुद्ध के अनुयायी बन उनके संघ में प्रविष्ट हो गये। उक्त घटना के पश्चात् भी उन्होंने नौ बार दूत भेजे। किन्तु हर बार उनके दूत और उनके साथी बुद्ध के अनुयायी बन संघ में प्रविष्ट हो जाते। अंतत: सुद्धोदन ने बुद्ध के बचपन के सखा कालुदायी को बुद्ध को दूत के रुप में बुद्ध के पास भेजा। कालुदायी भी बुद्ध से प्रभावित हो संघ में प्रविष्ट हो गये। किन्तु कालुदायी ने जो वचन सुद्धोदन को दिया था उसके पालन करते हुए बुद्ध को अपने पिता से मिलने का आग्रह करते रहे। अंतत: कालुदायी के दो महीनों के आग्रह के बाद बुद्ध ने कपिलवस्तु जाने को तैयार हुए और अपने साथ भिक्षुओं का एक महासंघ भी लेते गये । कपिलवत्थु पहुँच कर बुद्ध अपने साथियों के साथ निग्रोधाराम में रुके। तत: वे दैनिक भिक्षाटन के लिए निकले ।
राजा सुद्धोदन को जब यह सूचना मिली कि बुद्ध कपिलवस्तु की गलियों में भिक्षाटन कर रहे है तो बहुत खिन्न हुए । किन्तु बुद्ध ने उन्हें जब यह कही कि भिक्षुओं के लिए भिक्षाटन कोई असंगत कार्य नहीं है तो सुद्धोदन उनके उत्तर से संतुष्ट हुए । बुद्ध और उनके साथी भिक्षुओं को जब भोजन कराने के बाद उन्होंने बुद्ध की देशना सुनी तो वे सकिदागामी बने । फिर बुद्ध द्वारा महाधम्मपाल जातक सुनने के बाद अनागामी बने ।
सुद्धोदन जब मृत्यु-शय्या पर पड़े थे तब बुद्ध ने उन्हें धम्म देशना दी जिसे सुन सुद्धोदन निर्वाण को प्राप्ति हुए ।