चमत्कार बुद्ध कथाओं व आख्यायिकों का महत्त्वपूर्ण अंग है । बुद्ध के जन्म के साथ अनेकों अद्भुत, दैविक एवं चमत्कारिक घटनाओं का प्रचुर आख्यान अनेकों स्थान पर उपलब्ध व प्रचलित हैं । होसकता है बुद्ध की सिक्ष्याओंको आकर्षित करने के लिए उनके छद्म अनुयायियों ने चमत्कार कल्पनाओं को कहानी सिक्ष्याओं में जोडे हो लेकिन बुद्ध की प्रमुख सिक्ष्याओं जैसे अष्टांग मार्ग और पंचशिल से ये पता चलता है वह कभी चमत्कार, आलोकिक इत्यादि चीजों का विश्वासी नहीं थे । फिर भी प्रचलित कहानी को हम यहाँ पेश करते हैं ताकि पाठक को फेब्रिकेशन और असलियत की फर्क का अहसास हो ।
एक बार भिक्षु पिण्डोल भारद्वाज राजगृह में भ्रमण कर रहे थे। वहाँ उन्होंने एक श्रेष्ठी को एक ऊँची यष्टि पर चंदन की लकड़ी का एक कटोरा लटकवाते देखा। कारण पूछने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उस श्रेष्ठी को न तो आध्यात्मिक सिद्धियों पर विश्वास था और न ही किसी सिद्ध संयासी पर। अत: संयासियों का माखौल उड़ाने के उद्देश्य से उसने उस बाँस के लंबे डंडे पर वह कटोरा लटकवाया था। भिक्षु पिण्डोल भारद्वाज ने श्रेष्ठी के अभिमान को दूर करने के लिए उड़ते हुए उस बाँस के शीर्ष पर से चंदन के उस कटोरे को उतार लिया।
बुद्ध ने जब भिक्षु पिण्डोल भारद्वाज द्वारा राजगीर में दिखाए गये उस रास्ते चमत्कार की चर्चा सुनी तो उन्होंने भिक्षुओं को जनसाधारण को बीच चमत्कार न दिखाने का आदेश दिया।
तत: कई छोटे-मोटे संयासी लोगों को अपने चमत्कार दिखा कर प्रभावित करते और बौद्धों को पाखण्डी घोषित करते क्योंकि बौद्ध भिक्षुओं ने लोगों के समक्ष चमत्कार दिखाना बंद कर दिया था।
जब मगध-राज बिम्बिसार को इसकी सूचना मिली तो वे बुद्ध के पास पहुँचे और उनसे श्रावस्ती में चमत्कार दिखाने की प्रार्थना की। चूँकि गौतम बुद्ध के पूर्वोत्तर बुद्धों ने भी श्रावस्ती में चमत्कार दिखाए थे। अत: गौतम ने भी बिम्बिसार की प्रार्थना स्वीकार की और श्रावस्ती में अपने चमत्कार दिखाये।
वहाँ उन्होंने रत्नों की एक छत बनाई और उड़ते हुए उस पर पहुँच चक्रमण करने लगे। तत: कुछ प्रचलित लोक-मान्यताओं के अनुसार उन्होंने स्वयं को हजार रुपों में एक साथ ही प्रकट किया। फिर अन्य बुद्धों की तरह ही तीन पगों में तावलिंस लोक पहुँच गये।
बुद्ध को इन चमत्कारों से उनके आलोचक श्रावस्ती छोड़ भाग खड़े हुए। कहा जाता है कि पूरण कस्सप ने भी तभी श्रावस्ती छोड़ा और रास्ते में उनका अन्तकाल हुआ था।
कृपया ध्यान दें:
बुद्ध कभी भगवान, पुनर्जन्म और अवतार में विश्वास नहीं किया । बुद्ध की निर्वाण के वाद ही संगठित पुजारीवाद ने बौद्ध धर्म को अपभ्रंश और ध्वंस करने की शुरुआत कर दी थी । समय के साथ बौद्ध धर्म हीनजन(नीच लोग) और महाजन(महान लोग) में विभाजित कर दिया गया । उसके वाद ये विभाजित सेक्ट और भी टुकड़े होते चले गए । हीनयान को निम्न वर्ग(गरीबी) और महायान को उच्च वर्ग (अमीरी) भी कहा जाता है; हीनयान एक व्यक्त वादी धर्म था जिसका अर्थ कुछ जानकार “निम्न मार्ग” भी कहते हैं । हीनयान संप्रदाय के लोग बुद्ध की प्रमुख ज्ञानसम्पदा की परिवर्तन अथवा सुधार के विरोधी थे । यह बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों का ज्यों त्यों बनाए रखना चाहते थे । हीनयान संप्रदाय के सभी ग्रंथ पाली भाषा मे लिखे गए हैं । हीनयान बुद्ध जी की पूजा भगवान के रूप मे न करके बुद्ध जी को केवल बुद्धिजीवी, महापुरुष यानी इंसान ही मानते थे । हीनयान ही सिद्धार्था गौतम जी की असली शिक्षा थी । वैदिक वाले उनको विष्णु का अवतार बना के अपने मुर्तिबाद के छतरी के नीचे लाया और उनको भगवान बना के उनकी ब्योपारीकरण भी कर दिया । बुद्धिजीम असलियत में संगठित पुजारीवाद यानी ब्राह्मणवाद के शिकार होकर अपभ्रंश होता चला गया । हीनयान वाले मुर्तिको “बुद्धि” यानी “तर्क संगत सत्य ज्ञान” की प्रेरणा मानते हुए, यानी मूर्ति को केवल व्यक्तित्व की संज्ञान पैदा करने के लिए इस्तेमाल करते थे; इसीलिए मुर्ति के सामने मेडिटेसन यानी चित्त को स्थिर करने का योग अभ्यास करते थे; जब की ज्यादातर महायान वाले उनकी मूर्ति को भगवान मान के वैदिकों के जैसा पूजा करते हैं । महायान की ज्यादातर स्क्रिप्ट संस्कृत में लिखागया है यानी ये इस बात का सबूत है बुद्धिजीम की वैदिक करण की कोशिश की गयी । उसमे पुनः जन्म, अवतार, भगवान, देव, देवताओं, वैदिक भगवान जैसे इंद्र, ब्रम्हा, विष्णु, महेश्वर, स्वर्ग, नर्क, जैसे कांसेप्ट मिलाये गए और असली बुद्धिजीम को अपभ्रंस किया गया । जो भगवान को ही नहीं मानता वह अवतार को क्यों मानेगा? अगर अवतार में विश्वास नहीं तो वह क्यों पुनर्जन्म में विश्वास करेगा? महायान सिद्धार्था गौतम जी की यानी बुद्ध की विचार विरोधी आस्था है जिसको ब्राह्मणीकरण किया गया; बाद में ये दो हीनयान और महायान सखाओंसे अनेक बुद्धिजीम की साखायें बन गए और अब तरह तरह की बुद्धिजीम देखने को मिलते हैं जिसमें तंत्रयान एक है । तंत्रयान बाद में वज्रयान और सहजयान में विभाजित हुआ । जहां जहां बुद्धिजीम फैला था समय के साथ तरह तरह की सेक्ट बने जैसे तिबततियन बुद्धिजीम, जेन बुद्धिजीम इत्यादि इत्यादि । हीनयान संप्रदाय श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला हुआ है । अनुगामियों का मानना है इन देशों में फैली हीनयान अपभ्रंस नहीं है जो की गलत है । बाद में यह संप्रदाय दो भागों मे विभाजित हो गया- वैभाष्क एवं सौत्रान्तिक । बुद्ध ने अपने ज्ञान दिया था ना कि उनकी ज्ञान की बाजार । अगर आपको उनकी दर्शन अच्छे लगें आप उनकी सिद्धान्तों का अनुगामी बने ना की उनके नाम पे बना संगठित पहचान और उनके उपासना पद्धत्तियोंकी । आपका ये जानना जरूरी है, असली बुद्धिस्ट ज्ञान सम्पदा अपभ्रशं होकर उसमें तरह तरह की वैदिक सोच जैसे अवतार, पुनर्जन्म, भगवान, देव/ देवताओं, वैदिक भगवान जैसे इंद्र, ब्रम्हा, विष्णु, महेश्वर/रूद्र, स्वर्ग, नर्क, इत्यादि सोच घोलागया है और उस को सदियों अपभ्रशं करके असली बुद्ध शिक्षाओं को भ्रमित किया जारहा है, और बुद्धिजीम को वैदिक छतरी के नीचे लाने की कोशिश हमेशा हो रही है । अगर आपको कोई भी बुद्धिस्ट स्क्रिप्चर में भगवान, मूर्त्तिवाद, अवतार, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नर्क, चमत्कार, आलोकिक, भूत प्रेत, शैतान, जादू या काला जादू, हवन, वली, भोग/प्रसाद, व्रत, गंगा स्नान, छुआ छूत, अंधविश्वास, कुतर्क, हिंसा, अपराध, आस्था से जुड़ी सामाजिक बुराईयां इत्यादि इत्यादि जैसे वैदिक आस्था देखने को मिले आपको समझलेना होगा ये अपभ्रंस है । अगर ये सब आस्था बुद्ध को पसंद होता वह वैदिक दर्शन से अलग नहीं होते । बुद्ध के निर्वाण के वाद उनकी कही गयी सिक्ष्याओं को उनके अनुयायिओं के द्वारा संगृहीत कियागया था उन्हों ने कभी अपने हाथों में लिखित पाण्डुलिपि लिखकर नहीं गये थे जो उनकी लेख और शिक्षा का अपभ्रंस न हो पाये । महाजन सेक्ट बुद्ध की असली शिक्षा से अलग है और ये ज्यादातर ब्राह्मणी करण है जिसके ज्यादातर स्क्रिप्चर संस्कृत में ही मिलेंगे; जिसको वैदिकवादी छद्म बुद्धिस्ट सन्यासिओं ने हमेशा अपभ्रंस और नष्ट करते आ रहे हैं । मेत्रेयः भावी बुद्ध एक काल्पनिक चरित्र है जिसकी बुद्ध की सिक्ष्याओं से कोई सम्बद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के नाम पे धूर्त्तों के द्वारा फैलाई गई अफवाएं है, जैसे वैदिक वाले विष्णु की कल्कि अवतार के वारे अफवाएं फैलाई हुई है । बुद्ध के सिखाये गए अष्टांग मार्ग से कोई भी बुद्ध बन सकता है ।