व्यवहार के बारे में (ज्ञान और व्यवहार, जानने और कर्म करने के आपसी संबंध के बारे में) – माओ त्से–तुङ, जुलाई 1937

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हमारी पार्टी में कुछ साथी कठमुल्लावादी थे, जिन्होंने एक लंबे समय तक चीनी क्रांति के अनुभव को अस्वीकार किया और इस सत्य को नहीं माना कि “मार्क्सवाद कोई कठमुल्ला–सूत्र नहीं बल्कि कर्म का मार्गदर्शक है”। वे लोग मार्क्सवादी रचनाओं के वाक्यों और वाक्यांशों को उनके प्रसंग से अलग करके उन्हें रट लेते थे और उनके जरिए लोगों पर रोब गालिब करते थे। कुछ साथी अनुभववादी थे, जो बहुत दिनों तक अपने आंशिक अनुभव से चिपके रहने के कारण न तो क्रांतिकारी व्यवहार के लिए क्रांतिकारी सिद्धांतों के महत्व को समझ पाए और न क्रांति की सम्पूर्ण स्थिति  को ही देख पाए। ऐसे लोग अंधे होकर काम करते  रहे, हालांकि उन्होंने बड़े परिश्रम से काम किया। इन दोनों ही किस्म के साथियों, खासतौर से कठमुल्लावादियों, के गलत विचारों की वजह से 1931.34 में चीनी क्रांति को भारी नुकसान उठाना पड़ा। खास तौर से कठमुल्लावादियों ने मार्क्सवाद का चोंगा पहनकर बहुत से साथियों को गुमराह किया। “व्यवहार के बारे में” नामक यह लेख  कामरेड माओ त्से–तुङ ने पार्टी के अंदर कठमुल्लावाद और अनुभववाद, खास तौर से कठमुल्लावाद जैसी  मनोगतवादी गलतियों का पर्दाफाश मार्क्सवादी ज्ञान–सिद्धांत के दृष्टिकोण के अनुसार करने के लिए लिखा था। इसका नाम “व्यवहार के बारे में” इसलिए रखा गया क्योंकि इसमें कठमुल्लावादी किस्म के मनोगतवाद का, जो व्यवहार को कम महत्व देता है, पर्दाफाश करने पर जोर दिया गया है। इस लेख के विचार कामरेड माओ त्से–तुङ ने येनान में जापान–विरोधी सैनिक व राजनीतिक कालेज में भाषण के रूप में प्रस्तुत किये थे।

मार्क्स से पहले का भौतिकवाद, मनुष्य की सामाजिक प्रकृति से अलग रहकर, उसके ऐतिहासिक विकास से अलग रहकर ज्ञान की समस्या को परखता था, और इसलिए सामाजिक व्यवहार पर, यानी उत्पादन और वर्ग–संघर्ष पर ज्ञान की निर्भरता को वह नहीं समझ पाता था।

पहली बात तो यह कि मार्क्सवादी लोग मनुष्य की उत्पादक कार्रवाई को सबसे बुनियादी व्यावहारिक कार्रवाई मानते हैं, एक ऐसी कार्रवाई जो उसकी अन्य सभी कार्रवाइयों को निश्चित करती है। मनुष्य का ज्ञान मुख्यत: उसकी भौतिक उत्पादन की कार्रवाई पर निर्भर रहता है, जिसके जरिए वह कदम–ब–कदम प्राकृतिक घटना–क्रम, प्रकृति के स्वरूप, प्रकृति के नियमों और अपने तथा प्रकृति के बीच के संबंधों की जानकारी प्राप्त करता है; और अपनी उत्पादक कार्रवाई के जरिए वह कदम–ब–कदम मनुष्य और मनुष्य के बीच के निश्चित संबंधों की जानकारी भी अलग– अलग मात्रा में प्राप्त करता जाता है। इस तरह का कोई भी ज्ञान उत्पादक कार्रवाई से अलग रहकर प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक वर्गहीन समाज में हर व्यक्ति समाज के एक सदस्य के रूप में समाज के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर परिश्रम करता है, उनके साथ एक निश्चित प्रकार के उत्पादन–संबंध कायम करता है तथा मनुष्य की भौतिक आवश्यकताएं पूरी करने के लिए उत्पादक कार्रवाई में जुट जाता है। विभिन्न प्रकार के वर्ग–समाजों में, समाज के सभी वर्गों के सदस्य भी, भिन्न रूपों में, एक निश्चित प्रकार के उत्पादन–संबंध कायम करते हैं तथा अपनी भौतिक आवश्यकताएं पूरी करने के लिए उत्पादक कार्रवाई में जुट जाते हैं। यही वह मूल स्रोत है जहां से मनुष्य का ज्ञान विकसित होता है।

मनुष्य का सामाजिक व्यवहार महज उसकी उत्पादक कार्रवाई तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि बहुत से अन्य रूप भी धारण करता है-जैसे वर्ग–संघर्ष, राजनीतिक जीवन, वैज्ञानिक और कलात्मक गतिविधि; संक्षेप में यह कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी के रूप में समाज के व्यावहारिक जीवन के सभी क्षेत्रों में भाग लेता है। इस तरह मनुष्य न सिर्फ अपने भौतिक जीवन द्वारा बल्कि अपने राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन द्वारा भी (राजनीतिक जीवन और सांस्कृतिक जीवन, दोनों ही भौतिक जीवन से घनिष्ठ रूप में संबंधित हैं) मनुष्य और मनुष्य के बीच के विभिन्न प्रकार के संबंधों की जानकारी अलग–अलग मात्रा में प्राप्त करता रहता है। सामाजिक व्यवहार के इन अन्य रूपों में, खास तौर से विभिन्न प्रकार का वर्ग–संघर्ष, मानव–ज्ञान के विकास पर गहरा प्रभाव डालता है। वर्ग–समाज में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी वर्ग के सदस्य के रूप में ही जीवन व्यतीत करता है, तथा प्रत्येक प्रकार की विचारधारा पर, बिना किसी अपवाद के, किसी न किसी वर्ग की छाप होती है।

मार्क्सवादियों का मत है कि मानव–समाज में उत्पादक कार्रवाई कदम–ब–कदम निम्न स्तर से उच्च स्तर की ओर बढ़ती जाती है, तथा फलत: मानव–ज्ञान भी, चाहे वह प्रकृति संबंधी हो चाहे समाज संबंधी, कदम–ब–कदम निम्न स्तर से उच्च स्तर की ओर बढ़ता जाता है, यानी उथलेपन से गहरेपन की ओर और एकांगीपन से बहुमुखीपन की ओर बढ़ता जाता है। इतिहास में बहुत समय तक समाज के इतिहास के बारे में मानव का ज्ञान एकांगी ही बना रहा, क्योंकि एक ओर तो शोषक वर्गों के पूर्वाग्रह समाज के इतिहास को सदा विकृत करते रहते थे, तथा दूसरी ओर छोटे पैमाने का उत्पादन मानव–दृष्टिकोण को सीमित कर देता था। उत्पादन की बड़ी शक्तियों (बड़े पैमाने के उद्योग–धंधों) के साथ जब आधुनिक सर्वहारा वर्ग का आविर्भाव हुआ, तभी मनुष्य सामाजिक इतिहास के विकास की सर्वांगीण, ऐतिहासिक समझ प्राप्त कर सका और समाज संबंधी अपने ज्ञान को विज्ञान का रूप, मार्क्सवाद के विज्ञान का रूप दे सका।

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