ऋषि मुनि एवं शास्त्र से यह ज्ञात होता है की अगर जाने अनजाने में किसी से पाप कर्म हो जाए, तो उसका प्रायश्चित करने से पाप कम हो जाते हैं. प्रायश्चित, अर्थात पश्यताप.
इसी सन्दर्भ में एक विद्वान ने एक कथा का विवेचन करते हुए बताया था की एक कस्बें में एक महात्मा रहते थे. उसी कसबे में एक वेश्या रहती थी. महात्माजी अपना कार्य करते थे और वह वेश्या अपना कार्य करती थी, यानी महात्मा-जी लोगों को अच्छी शिक्षा और ज्ञान का उपदेश देते थे और वेश्या अपने धंधे में लिप्त रहती थी.
लेकिन वेश्या रोजाना सुबह के समय जब नाह धोकर धंधे पर बैठती थी, तो उससे पहले दो मिनट भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर अपने अपराधों की क्षमा मांगती, फिर अपने धंधे में लिप्त हो जाती. उसके धंधे से कस्बों में तरह-तरह की अफवाहे फैलने लगीं.
तब एक दिन महात्मा ने उसे अपने आश्रम पर बुलाया और समझाया की यह तुम गलत कार्य कर रही हो, इसमें तुम्हें बहुत भारी पाप लग रहा है. इसलिए तुम यह गलत धंधा छोड़ दो. वेश्या ने कहा महात्माजी! अगर में अपना धंधा छोड़ दूंगी, तो भूखी मर जाउंगी. तब महात्मा ने समझाया – भगवान् पर भरोसा रखो, वही तुम्हें आहार देगा.
वेश्या ने उनकी बात मानकर धंधा छोड़ दिया. कुछ दिन तो उसने अपनी जमा पूंजी से काम चलाया, लेकिन जब वह जमा पूंजी ख़त्म हो गई, तो वह महात्मा के पास जाकर बोली – मेरा सारा धन ख़त्म हो गया, अब में क्या खाऊं. तब महात्मा ने कहा –भगवान पर भरोसा रखो, वह तुम्हें आहार जरूर देगा.
वेश्या चुप-चाप लौट आई. एक दिन वह भूखी सो गई. फिर दूसरा दिन बिता, तीसरा दिन बिता. जब उससे भूख बर्दाश्त नहीं हुई, तो वह पहले की भांति अपने धंधे में लिप्त हो गई और वही क्रिया दोहराने लगी, अर्थात भगवान की मूर्ति के सामने दो मिनट प्रायश्चित करती, फिर अपने धंधे में लग जाती.
संयोग ऐसा हुआ की कुछ दिन बाद महात्मा का देहांत हो गया और उसी दिन वेश्या भी मर गई. वैदिक धर्म की मान्यता के अनुसार दोनों की आत्मा उनके शरीर से निकलकर यमराज के दरबार में गई. धर्मराज ने वेश्या और महात्माजी – दोनों के पाप और पुण्य का लेखा-जोखा किया, उसके बाद वेश्या को स्वर्ग और महात्माजी को नरक में डालने का आदेश दिया.
महात्माजी ने यमराज से कहा – हे अधर्मराज! आपके दरबार में अन्याय हो रहा हैं. मैंने जीवन भर लोगों को अच्छे मार्ग पर चलने का उपदेश दिया, फिर भी आप मुझे नरक में डाल रहे हैं, जबकि वेश्या ने जीवन भर पाप कर्म किया उसे स्वर्ग दे रहे हैं, यह आपका कैसा न्याय हैं ??
तब यमराज ने महात्मा से कहा – हम धर्मराज, हमारे दरबार में कभी अन्याय नहीं होता. देखो, उधर पृथ्वीलोक में आपके शरीर को लोग गाजे-बाजे के साथ दफनाने ले जा रहे हैं, वहां आपकी मजार बनाकर पूजा किया करेंगे. चूंकि आपके शरीर ने, आपके मुंह ने प्रवचन किया था, इसलिए आपके शरीर की सदगति हो रही हैं*, लेकिन आपके मन में परमात्मा के प्रति वास्तविक प्रेम नहीं था, बल्कि आपके मन में नाम कमाने की चारों और प्रसिद्द होने की लालसा थी.
आत्मा से कभी आपने परमात्मा का सुमिरन नहीं किया, इसलिए यहां नरक में डाले जा रहे हो. उधर दूसरी और वेश्या को देखो. उसने शरीर से पाप किया था, उसके शरीर को लोग घसीटकर नाले में फेंक रहे हैं. उसके शरीर की चील, कौवे खाएंगे, लेकिन वह धंधे पर बैठने से पहले दो मिनट ही सही, किन्तु सच्चे मन से भगवान् की मूर्ति के सामने बैठकर अपने पापों का प्रायश्चित करती थी.
इसलिए उसकी आत्मा को स्वर्ग प्राप्त हो रहा है. प्रायश्चित करने से सारे पाप नष्ट हो जाते थे, यह बात आप भी भली भांति जानते हैं, किन्तु आपमें तो नाम कमाने का भुत सवार था, अत: जिसने जैसा किया उसे वैसा मिला.