मांगे ही दुःख का कारण हैं इसके ऊपर एक लोक प्रिय मजाकिया काल्पनिक कहानी सुनने को मिलता है।
जब भगवान ने दुनिया बनाई, तब उसने पहले गधा को बनाया और उससे कहा कि तु सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन भर तेज़ धुप में भी अपने मालिक की गुलामी करगा । अपनी पीठ पर बोझ लेकर घास खाएगा, तेरा कोई बुद्धि नहीं होगी और तू 60 साल तक जियेगा । गधे ने जवाब दिया कि मैं एक गधा हूँगा, लेकिन 60 साल जीना मेरेलिए ज्यादा है । मुझे केवल बीस साल तक ही जीना है । भगवान ने गधा की बात मान ली और उसे 20 साल की उम्र दे दी ।
फिर भगवान ने कुत्ते को बनाया और उससे कहा कि तू एक कुत्ता होगा, तू लोगों के घर की चौकीदारी करेगा और इंसान की सबसे अच्छा दोस्त बनेगा और कुछ भी दिया हुआ संतोष से खायेगा और तू 25 साल तक जियेगा । कुत्ते ने उत्तर दिया 25 साल तक जीना मेरेलिए ज्यादा हैं, आप मुझे केवल 10 साल दें । भगवान ने कुत्ता की बात मान ली और उसे 10 साल की उम्र दे दी ।
और फिर भगवान ने बंदर बनाएं और भगवान ने बंदर से कहा – तुम लोगों का मनोरंजन करना, उन्हें करतब दिखाना और उन्हें खूब हसाना । में तुझे जीने के लिए 20 साल की उम्र देता हूँ । बन्दर ने कहा – करतब दिखाने के लिए 20 साल की उम्र? आपको यह ज्यादा नहीं लगती? में भी उन कुत्तों की तरह आपको 20 साल की उम्र में से 10 साल आपको वापस लौटाता हूँ । भगवान राजी हो गया ।
फिर भगवान ने इंसान को बनाया, और कहा तुम – सोना, भर-पेट खाना, खेलना, शादी करना, अपनी जिंदगी में खूब मजे करना में तुम्हें जीने के लिए 20 साल देता हूँ । इंसान ने कहा – क्या ? सिर्फ 2० साल ? आदमी ने इस्वर से कहा, में मेरे 20 साल, और 40 वो जो गधा ने आपको दिये थे, 15 और 10 साल वो जो कुत्ते और बन्दर ने आपको दिये थे, यह सब मुझे चाहिए । ईश्वर राजी हो गए और ईश्वर ने अपनी हाँ भर दी और तब से मनुष्य एक आदमी के रूप में 20 साल तक मजा करता है, वह शादी करता है और 40 साल तक गधे की तरह काम करता है और उसके फॅमिली बोझ को संभालता है, जब उसके बच्चे बड़े होने लगते हैं, वह कुत्ते की तरह 15 साल तक घर, फॅमिली, बीवी और बच्चों का रखवाली करता है घर में जो भी कुछ खाने को दिया जाता है उसे खाता है; और जब वह बूढ़ा हो जाता है वह रिटायर हो कर बाकी की जिंदगी एक बंदर की तरह बच्चों की एक घर से दुषरे घर जाकर अपने पोते-पोतियों को हँसाता है ।
हमारी, और-और मांगने की आदत से ही हम परेशान हैं, हमें जितना मिलता है उससे हम कभी संतुष्ट ही कहा हुए? हमारे दुखो का कारण सिर्फ एक है और वह हैं – असंतुष्टि ।