महान् मत्स्य -जातक कथा

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श्रावस्ती के निकट जेतवन में कभी एक जलाशय हुआ करता था। उसमें एक विशाल मत्स्य का वास था। वह शीलवान्, दयावान् और शाकाहारी था।

उन्हीं दिनों सूखे के प्रकोप के उस जलाशय का जल सूखने लगा। फलत: वहाँ रहने वाले समस्त जीव-जन्तु त्राहि-त्राहि करने लगे। उस राज्य के फसल सूख गये । मछलियाँ और कछुए कीचड़ में दबने लगे और सहज ही अकाल-पीड़ित आदमी और पशु-पक्षियों के शिकार होने लगे । अपने साथियों की दुर्दशा देख उस महान मत्स्य की करुणा मुखर हो उठी । उसने तत्काल ही वर्षा देव पर्जुन का आह्मवान् अपनी सच्छकिरिया के द्वारा किया। पर्जुन से उसने कहा, “हे पर्जुन अगर मेरा व्रत और मेरे कर्म सत्य-संगत रहे हैं तो कृपया बारिश करें।” उसकी सच्छकिरिया अचूक सिद्ध हुई। वर्षा देव ने उसके आह्मवान् को स्वीकारा और सादर तत्काल भारी बारिश करवायी।

इस प्रकार उस महान और सत्यव्रती मत्स्य के प्रभाव से उस जलाशय के अनेक प्राणियों के प्राण बच गये।

अच्छी तरह से ध्यान दें: अगर किसी कहानी में वैज्ञानिक आधार और यौक्तिकता नहीं है तो इसे सत्य मानना या नैतिक ज्ञान समझना मूर्खता है । हालांकि कुछ कहानियाँ मनोरंजन और नीति ज्ञान के लिए क्यों न लिखा गया हो लेकिन ये ज्यादातर वर्ण व्यवस्था यानि जात पात, अंध विश्वास, तर्क हीनता, अज्ञानता, नफरत, धर्म, हिंसा और व्यक्ति विशेष के प्रचार और प्रसार के  उद्देश्य से लिखागया धूर्त कहानियां है इसलिए ये कहानियाँ आपको पढ़ के उसके सच्चाई भी आप को जान ने की जरूरत है । जैसे अच्छा खाना एक अच्छा स्वास्थ्य बनाता है, वैसे ही अच्छी ज्ञान अच्छी दिमाग बनाते हैं । अगर किसी व्यक्ति का काल्पनिक और मानसिक स्तर अगर वास्तविकता के साथ समानता नहीं है और अंधविश्वास के अधीन होकर अज्ञानता का अधिकारी बन जाये तो उसको मानसिक विकृति कहते हैं । हमेशा कहानी का तार्किक नैतिकता को ही ज्ञान के रूप में स्वीकार करे अन्यथा केवल एक मनोरंजन ।

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