एक सम्राट के दरबार में एक आदमी ने आकर कहा कि में स्वर्ग से कपडे ला सकता हूं, वह भी सिर्फ आपके लिए. उस सम्राट ने
कहा स्वर्ग के वस्त्र सुना नहीं कभी, देखें नहीं कभी.
उस आदमी ने कहा में ले आउंगा उन्हें, फिर आप देख भी सकेंगे और पहन भी सकेंगे. लेकिन बहुत पैसे खर्च करने पडेंगे कई करोडो रुपये खर्च हो जायेंगे क्योंकी रिश्वत की आदत दैवताओ तक पहुंच गयी है.
जब से ये राजनीतिज्ञ मर-मर कर स्वर्ग पहुंच गये. तब से रिश्वत की आदत भी वहां तक पहुंच गयी. वहां भी रिश्वत जारी हो गई है. क्योंकि देवता कहते है, हम आदमीयों से पीछे थोडी रह जायेंगे. और यहाँ तो पांच रुपये की रिश्वत चलती है वहां तो करोडो रुपयों से नीचे बात ही नहीं होती क्योंकि देवताओ का लोक है. सम्राट ने कहा कोई बात नहीं.
लेकिन धोखा देने की कोशिश मत करना करोंडो रुपये देंगे तुम्हे लेकिन भागने की कोशिश मत करना नहीं तो मुश्किल में पड जाओगे. उसने कहा भागने का कोई सवाल नहीं महल के चारो तरफ पहरे करवा दिये जाए मैं महल के भीतर ही रहुंगा क्योंकी देवताओ का रास्ता सडको से होकर नहीं जाता. वो तो आतंरिक यात्रा है, अन्दर की. वही से अन्दर से कोशिश करुंगा.
उस आदमी ने 6 महीने का समय मांगा और 6 महीनों में कई करोड रुपये सम्राट से ले लिए. दरबारी हैरान थे और चिंतित थे. लेकिन सम्राट उनसे कहता था घबराओ नहीं. घबराने की बात क्या है. रुपये लेकर जाएगा कहाँ महल के बाहर . 6 महीने पूरे होने पर पूरी राजधानी में हजारो लाखों लोग इकठ्ठे हो गए देखने को वह आदमी ठीक समय बारह बजें जो उसने दिया था.
फिर वह आदमी एक बहुमूल्य पैटी लिए हुए महल के बाहर आ गया अब तो कोई शक की बात न थी. वह आदमी ओर जूलुस, महल पहुंचे दूर-दूर के सम्राट, धनपती, दरबारी इकठ्ठे थे देखने को. उस आदमी ने पैटी को एक तरफ रखा और कहा ये ले आया वस्त्र (कपडे). अब आप मेरे पास आ जाइये में देवताओ के वस्त्र देदू आप पहन ले. महाराज ने पगडी दी उसने पगडी को उस पैटी में डाल दी .
वहां से खाली हाथ बहार निकाला और कहा महाराज यह पगडी दिखायी पडती है, हाथ में कुछ भी नहीं था. महाराज ने गौर से देखा और उस आदमी ने कहा खयाल रहै. देवताओ ने चलते वक्त मुझसे कहा था. ये पगडी और कपडे सिर्फ उसी को दिखाई पडेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुआ हो. उस सम्राट ने यह सुनते ही कहा हां-हां दिखाई पडते है.
क्यु दिखाई नहीं पडेंगे ? बडी सुंदर पगडी है ऐसी सुंदर पगडी न तो कहीं देखी है न कहीं सुनी है. दरबारीयों ने सुना किसी को भी पगडी दिखाई नहीं पडती थी, होती तो दिखाई पडती. लेकिन दरबारीयो ने देखा इस वक्त यह कहना कि नहीं दिखाई पडती व्यर्थ ही अपने मरें हुए बाप पर शक पैदा करवाना है. हमें इससे क्या फायदा है. पगडी से हमकों क्या लेना देना.
वै भी तालियां बजाने लगे और कहने लगे, धन्य महाराज धन्य पृथ्वी पर ऐसा अवसर कभी नही आया ऐसी पगडी कभी देखी नहीं गयी. एक-एक आदमी अपने मन में सोच रहा था की बडी गडबड बात है. लेकिन उन्होंने देखा की सारे लोग कहते है कि पगडी है. तो उसने सोचा कि हो सकता है अपने माँ गडबड रहे हो.
लेकिन यह किसी से कहने की बात नहीं है, अपने भीतर जान लिया वो ठीक है. अपना राज अपने घर में रखो. जब सारे लोग कहतें है तो ठीक ही कहते होंगे. जिसको जितना डर लगा वह और लाईन से आगे आकर कहने लगा. वाह! महाराज धन्य है. क्योंकि उन्हें लगा कि कहीं पास के लोगो को शक न हो जाए कि ये आदमी थोडे धीरे-धीरे बोलता है.
सम्राट ने देखा की जब सारा दरबार कह रहा है तों समझ गया वो के अपने पिता गडबड रहें होंगे. अब कुछ बोलना ठीक नहीं. जो कुछ हो कपडे हो या न हो स्वीकार कर लेना ही ठीक है. पगडी पहन ली उसने जो कि थी ही नहीं. कोट पहन लिया उसने जो था ही नहीं. एक-एक वस्त्र उसका छीनने लगा. वो नंगा हो गया. आखिरी वक्त रह गया तब वो घबराने लगा. ये तो बडी मुश्किल बात है. कहीं कपडे मालुम नहीं होते बस एक नीचे पहनने के कपड़े रह गया.
अब यह भी जाता है और उस आदमी ने कहा यह लीजिये महाराज अब ये देवताओ का जांघिया पहनिए इसको निकालिये. अब वो जरा घबडाया. यहां तक तो गनीमत थी. और दरबारी हैं कि तालीं पिटे जा रहे है कि महाराज कितने सुंदर मालुम पड रहे है इन वस्त्रो में.
उस आदमी ने महाराज से धीरे से कहा घबराईये मत महाराज सभी को अपने बाप कि फिकर है. जल्दी निकालिए नहीं तो झंझट हो जायेगी, लोगो को पता चल जायेगा. उन्होने जल्दी से जांघिया निकाल दिया. क्योंकि यह तो बडा घबराहट का मामला था. वो बिलकुल नंगे खडे हो गये. और दरबारी तो नाच रहे खुशी में कि धन्य हो महाराज.
जबकी एक-एक आदमी को राजा नंगा दिखाई पड रहा था. लेकिन अब कोई ऊपाय नहीं. रानी भी देख रही है कि राजा नंगा है. लेकिन कुछ कह नहीं सकते वह भी तालियां पिट रही है कि महाराज इतने सुंदर आप कभी दिखाई नहीं पडे. और तब उस आदमी ने कहा महाराज देवताओ ने मुझसे कहा था कि जब यह वस्त्र महाराज पहन ले तो उनकी शोभा यात्रा निकाली जानी चाहिए.
राजधानी में लोग आपकी प्रतिक्षा कर रहे हैं. रास्ते के किनारो पर हजारो-लाखो लोग खडे है. वे कहते है हम महाराज के दर्शन करेंगे. रथ तैयार है आप कृपा करके सवार हो जाए. अब बाहर चलिए. अब महाराज और भी घबढाए अब तक तो कम से कम दरबारी थे, अपने मित्र थे, परिचित थे, घर के लोग थे, और अब ये नया झंझट.
उस आदमी ने राजा के कान में कहा घबराईये मत आपके रथ के पहले ही एक डुग-डुगी पिटती चलेगी और खबर की जायेगी कि ये वस्त्र उसी को दिखाई पडेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुए, जैसे ये आदमी भीतर है ठीक वैसे ही बाहर के आदमी है.
सब तरफ एक से बडकर एक बेवकूफ आदमी है. आप घबराईये मत और अगर आपने इंकार किया की में बाहर नहीं जाता हूँ तो लोगो को आपके पिता पर शक हो जाएगा. राजा ने कहा चलो भाई (एक बार आदमी झंझट में पड जाये तो कहा निकले यह बताना मुश्किल है. जो आदमी झुट में पहले ही कदम पर रुक जायें वह रुक सकता है, बच सकता है जो दस पांच कदम आगे चल जाये उसके लिए मुश्किल हो जाती है. लौटना भी मुश्किल आगे जाना भी मुश्किल) उस बेचारे गरीब सम्राट को नंगा जाकर रथ पर खडा होना पडा.
उसके सामने ही डुग-डूगी पिटने लगी कि ये वस्त्र, महाराज के सुंदर वस्त्र, देवताओं के वस्त्र है. ये वस्त्र उन्ही को दिखाई पढेंगे जो अपने ही बाप से पैदा हुए हो. और सब को वस्त्र दिखाई पडने लगें. एक दम प्रशंसा होने लगी. गांव में खबर तो पहले ही पहुंच गयी थी ये सब लोग तैयार हो कर आए थे कि अपने बाप कि रक्षा करनी है और वस्त्र भी देखने थे. वस्त्र तो दिखाई नहीं पडते थे. राजा नंगे थे. लेकिन सारा जन समुह कहने लगा कि ऐसे सुंदर वस्त्र सपने में भी कहीं नहीं देखे.
लेकिन कुछ छोटे बच्चे अपने बापों के कंधो पर चडकर आ गये थे. वो अपने बाप से कहने लगे. पिताजी राजा नंगा है. उनके पिताजी ने कहा चुप ना समझ अभी तेरा ज्ञान कम है, अभी तेरी उम्र कम है, ये बातें अनुभव से आती है, बडी गहरी बाते है.
जब मेरी उम्र का हो जायेगा तब अनुभव मिल जायेगा. तब तुझे वस्त्र दिखाई पडने लगेंगे. ये बडे अनुभव से दिखाई पडते है. जो बच्चे चुप नहीं हुए उनके बापों ने उनका मुँह बंद करके पीछे खिसक गयें. क्योंकी बच्चों का क्या भरोसा आस-पास के लोग सुनले कि उस आदमी के लडके ने यह क्या कहा है.
हमेशा भीड़ के भय के कारण हम असत्यों को स्वीकार करके बैठे रहते है भीड़ का भय (Fear Of Crowd ) जिसको हम सत्य मान कर बैठे है. क्या वह सत्य है. या फिर भीड़ का भय है कि चारों तरफ के लोग क्या कहेंगे. चारों तरफ के लोग जो मानते है वही हम भी मानते है.
एक तरफ आप कहते है की हमें सत्य चाहिए ओर दूसरी तरफ यह ढोंग, ऐसे लोग सत्य कि खोज में कभी नहीं जा सकते जो भीड़ को स्वीकार कर लेते है. सत्य कि खोज भीड़ से मुक्त होने कि खोज है. क्योंकी भीड़ एक-दूसरे से भयभीत है. जिससे आप भयभीत है वो आप से भयभीत है ( Mutual Fear). यह कहानी भेड़ चाल की ओर इशारा करती हैं. हम भी वहीं मान लेते हैं जो भीड़ मान लेती हैं. जागो गलत चीजों के प्रति संभलो. भेड़ चाल में शामिल होना बंद करो.