बादशाह अकबर खाने के बहुत शौक़ीन थे इसलिए आये दिन महल में दावतों को आयोजन होता रहता था. इन दावतों में अकबर दरबारीयों के साथ बैठकर तरह-तरह के व्यंजनों को स्वाद लिया करते थे और ऐसे में जब बीरबल भी साथ होते तो फिर कहना ही क्या.
एक बार ऐसी ही एक दावत चल रही थी, बीरबल अकबर के पास बैठे थे भोजन के बाद खजूर की कटोरियां आई, अकबर और बीरबल खजूर खाते और गुठलियां कुर्सीयों के नीचे डाल देते थोडी देर में कुर्सीयों के नीचे गुठलियों के छोटे-छोटे ढेर लग गये.
गुठलियों के ढेर को देखकर अकबर ने सोचा आज बीरबल का मजाक बनाया जाये. उन्होंने अपनी कुर्सी के नीचे की गुठलियां चुपके से पैर से बीरबल की कुर्सी के पैर के नीचे सरका दी, बीरबल को इसका पता नहीं चला उसके बाद बादशाह अकबर एक दम खडे हो गये और सभी दरबारीयों को सुनाते हुए वह जोर से बोले- औह बीरबल तुम कितने खजूर खा गये ?
तुम इतने पेटू हो यह तो मुझे मालूम ही नहीं था, सभी दरबारी भी बीरबल की कुर्सी के नीचे गुठलियों का ढेर देखकर बादशाह का समर्थन करने लगे और देखते ही देखते बीरबल की हंसी उडने लगी. बीरबल अकबर की चालाकी समझ गये, वह भी बहुत चतुर थे, उनका मजाक उडाया जाये और वह चुप रहे यह कैसे हो सकता था.
उन्होंने तुरन्त नेहले पर देहला मारा, जहांपनाह आपकी बात सच हैं, मैं पेटू हूं यह सही हैं मैंने बहुत सारे खजूर खाये हैं यह भी सच हैं लेकिन आप तो मुझसे भी बडे पेटू हैं कि सारे खजूर गुठलियों सहित खा गये। फिर उन्होंने दरबारीयों से अकबर की कुर्सी के नीचे देखने के लिए कहा।
दरबारीयों ने देखा तो वहां एक भी गुठली नहीं थी, चारों ओर हंसी की लहर फ़ैल गयी. अकबर बीरबल का मजाक उडाने चले थे लेकिन खुद ही मजाक का पात्र बन गये।