एक बारहसिंगा झील में पानी पीने पहूंचा। वह जल में अपनी परछाई को देखकर बहुत खुश हुआ और कहने लगा- ओह! मेरा शरीर कितना सुन्दर है।
सिर तो मानो साचे मे ही डाल दिया है। उस पर लंबे-लंबे फैले हुए सिंग कितने मनोहर जान पडते है । भला ईष्वर ने इतने प्यारे व मजबुूत सिंग किस पशु को दियेे है।
यह कहते-कहते बाहरसिंगा की नज़र अपने पैरों पर पडी वह दुखी हो उठा और कहने लगा किन्तु यह पैर कितने पतले , सुखे और भददे है । हैं बनानेवाला मैंने तुम्हारा क्या बिगाडा था जो तुमने यह कुरूप पैर देकर मेरी सारी सुंदरता मिट्टी में मिलादी ।
तभी अचानक उसे शिकारी कुत्तो का स्वर सुनाई दिया । अपने जिन कुरूप् पैरों को देखकर वह कुड रहा था, उन्हीं के सहारे वह इतनी तेजी से भागा कि शिकारी कुत्तों की पकड से बहुत आगे निकल गया ।
लेकिन उसी समय बाहरसिंगा के लंबे सिंग एक पेड की डालियों में फस गये उसने बहुत जोर लगाया किन्तु सिंग नही निकल पाये । इतने में शिकारी कुत्ते आ गये और उस पर टुट पडे । बारह सिंगा की आंखे खुल गई उसने मरते-मरते कहा- मेरी समझ में आ गया कि मेरे जो पैर लम्बे, पतले सुखे और भद्दे थे वे ही मेरे प्राण बचा सकते थे ।
लेकिन सींग मेरे प्राणों की रक्षा नही कर पाए यदि मैंनें पहले ही जान लिया होता कि वास्तव में सुन्दर तो वह हैं जो हमारे काम आता हैं, तो आज मुझें अपने प्राण न गवाने पडते ।
कथा का संकेत यह हैं कि किसी भी व्यक्ति या वस्तु का मूलयांकन सुरत के आधार पर नही सिरत के आधार पर करना चाहिए। प्रतिकुल अवसर पर बाहरी सौंदर्य नही बल्कि योग्यता काम आती है ।