पुजारी, चोर, और दानव की कथा ~ पंचतंत्र

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एक गाँव में द्रोण नाम का पुजारी रहता था । भिक्षा माँग कर उसकी जीविका चलती थी । सर्दी-गर्मी रोकने के लिये उसके पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं थे । एक बार किसी यजमान ने पुजारी पर दया करके उसे बैलों की जोड़ी दे दी । पुजारी ने उनका भरन-पोषण बड़े यत्न से किया । आस-पास से घी-तेल-अनाज माँगकर भी उन बैलों को भरपेट खिलाता रहा । इससे दोनों बैल खूब मोटे-ताजे हो गये । उन्हें देखकर एक चोर के मन में लालच आ गया । उसने चोरी करके दोनों बैलों को भगा लेजाने का निश्चय कर लिया । इस निश्चय के साथ जब वह अपने गाँव से चला तो रास्ते में उसे लंबे-लंबे दांतों, लाल आँखों, सूखे बालों और उभरी हुई नाक वाला एक भयङकर आदमी मिला ।

उसे देखकर चोर ने डरते-डरते पूछा-“तुम कौन हो ?”

उस भयङकर आकृति वाले आदमी ने कहा-“मैं ब्रह्मराक्षस हूँ, पास वाले पुजारी के घर से बैलों की जोड़ी चुराने जा रहा हूँ ।”
राक्षस ने कहा -“मित्र ! पिछले छः दिन से मैंने कुछ भी नहीं खाया । चलो, आज उस पुजारी को मारकर ही भूख मिटाऊँगा । हम दोनों एक ही मार्ग के यात्री हैं । चलो, साथ-साथ चलें ।”

शाम को दोनों छिपकर पुजारी के घर में घुस गये । पुजारी के शैयाशायी होने के बाद राक्षस जब उसे खाने के लिये आगे बढ़ने लगा तो चोर ने कहा-“मित्र ! यह बात न्यायानुकूल नहीं है । पहले मैं बैलों की जोड़ी चुरा लूँ, तब तू अपना काम करना ।” राक्षस ने कहा-“कभी बैलों को चुराते हुए खटका हो गया और पुजारी जाग पड़ा तो अनर्थ हो जायगा, मैं भूखा ही रह जाऊँगा । इसलिये पहले मुझे पुजारी को खा लेने दे, बाद में तुम चोरी कर लेना ।”

चोर ने उत्तर दिया -“पुजारी की हत्या करते हुए यदि पुजारी बच गया और जागकर उसने रखवाली शुरु कर दी तो मैं चोरी नहीं कर सकूंगा । इसलिये पहले मुझे अपना काम कर लेने दे ।”

दोनों में इस तरह की कहा-सुनी हो ही रही थी कि शोर सुनकर पुजारी जाग उठा । उसे जागा हुआ देख चोर ने पुजारी से कहा-“पुजारी ! यह राक्षस तेरी जान लेने लगा था, मैंने इसके हाथ से तेरी रक्षा कर दी ।” राक्षस बोला-“पुजारी ! यह चोर तेरे बैलों को चुराने आया था, मैंने तुझे बचा लिया ।” इस बातचीत में पुजारी सावधान हो गया । लाठी उठाकर वह अपनी रक्षा के लिये तैयार हो गया । उसे तैयार देखकर दोनों भाग गये ।

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क्रमरहित सूची

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