एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में कागज पर पेंसिल से एक लंबी लकीर खिंची और सभी दरबारीयों से कहा कि इस लकीर को बिना हटाये या बिना मिटाये छोटी कर के दिखाए. सभी दरबारी एक-दूसरे का मूंह देखने लगे. किसी को यह समझ में न आया कि भला बिना हटाये या मिटाये लकीर को छोटी कैसे किया जा सकता है.
आंखिर में अकबर ने बीरबल को अपने पास बुलाकर कहा – बीरबल यह लकीर न तो हटाई जाये न मिटाई जाये मगर छोटी हो जाये. बीरबल ने उसी वक्त उस लकीर के नीचे एक दूसरी बडी लकीर पेंसिल से खिंच दी और कहा अब देखिए जहांपनाह आपकी लकीर अब इससे छोटी हो गयी. बादशाह यह देखकर बहुत खुश हुए और मन ही मन बीरबल की अक्ल की दाद देने लगे, वे कोशिश करते थे कि किसी भी प्रकार बीरबल को शिकस्त दें लेकिन बीरबल तो बीरबल थे. अगर किसी से आगे बढ़ना है तो उसकी टांग खींचने के बजाये खुद अच्छा परफॉरमेंस कर के दिखाए. जैसे बीरबल ने एक लकीर को बिना छुए उसे छोटी कर के दिखा दिया ठीक वैसे ही आप भी किसी को कोई नुकसान पहुंचाए बिना ही उससे अच्छा काम कर के दिखाए.