एक राजा जो बहुत परोपकारी थे, उनके पास बहुत ही सुन्दर और विशाल चन्दन का बाग था जिससे हर वर्ष उनको सहस्त्रों रूपये का चन्दन अन्य देशावरों को जाता जिससे तेल और इत्र तैयार किये जाते थे..
एक रोज, राजा उनके सैनिकों के साथ घोड़ों पर सवार होकर अपने प्रजाजन का हाल जानने के उद्देश्य से अपने महल से निकले. लौटते समय बहुत अँधेरे होने के कारण वो मार्ग से भटक गए और एक घने जंगल में जा पहुँचे. उन्होंने जंगल में एक भील और उनकी पत्नी को झोपड़ी बनाये रहते हुए देखा.
राजा को अपने समीप देखकर भील ने बड़े ही स्नेह पूर्वक उनका आदर सत्कार किया, और सभी सैनिकों और राजा के लिए जल, आसन, फल, कंद-मूल का प्रबंध किया.. राजा ने बहुत सुखपूर्वक रात्रि वहाँ बिताई.
प्रातः काल जब राजा जाने के लिए तैयार हुए तब उन्होंने भील से पुछा- “तुम अपनी जीविका यहाँ किस प्रकार से चलाते हो?” भील ने कहा- “महाराज, मैं रोज वन से लकड़ी काटता हूँ और उसका कोयला तैयार करता हूँ, उसी को बाद में बेचकर अपना जीवन निर्वाह करता हूँ..”
राजा ने कहा- “हम तुमसे बहुत बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हैं! यदि तुम हमारे नगर में चलकर रहो तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी..” भील ने कहा- “महाराज! मुझे नगर का माहौल पसंद नहीं है, वन जीवन ही मुझे ज्यादा आनंददायी प्रतीत होता है..”
राजा ने कहा- “ठीक है! हम अपना बहुत बड़ा चन्दन का बाग तुमको देते हैं, वहीँ जाकर तुम अपना जीवन निर्वाह करो, ये तुम्हारे लिए बहुत अच्छा रहेगा.. और यदि तुमने अच्छे ढंग से मेहनत की तो तुम्हारा वंश-वन्शांतर उसी बगिया से सुखपूर्वक अपना जीवन निर्वाह करता रहेगा..” भील का खुशी का ठिकाना न था.. राजा की इस उदारता की सराहना करते हुए वह चन्दन के बाग को चल दिया और वहीँ पर अपनी कुटिया बनाकर रहने लगा..
भील को चन्दन के बाग में रहते हुए एक वर्ष हो चुके थे. राजा ने सोचा क्यों न आज चन्दन के बाग की सैर कर आऊँ! और अपने कृपापात्र भील को वहाँ देखूं, अब तो वह बड़ा ही अमीर हो गया होगा. हजारों रूपये साल की आमदनी पाकर अब तो वह बड़े ही ठाट बाट से रहता होगा.
राजा चंदन की बाग पर पहुंचकर देखते क्या हैं कि पूरा चन्दन का बाग उजड़ चूका है और कुछ ही पेड़बचे हुए हैं बाकि सब तरफ कोयला का खदान बन चूका है… राजा को भील से ऐसी उम्मीद नहीं थी, वो यह दृश्य देखकर बहुत दुखी हुए.. उन्होंने थोड़ा आगे बढ़कर भील से पुछा-“यहाँ यह क्या कर दिया तुमने? बगिया कैसे उजड़ गई? और तुम्हारी दशा क्या है?”
भील बोला- “महाराज! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने मुझे यह बाग दिया, पहले मुझको वन में जाकर लकड़ी काटने पड़ते और कोयले बनाकर कोशों चलकर आता था.. लेकिन अब यहाँ पास ही लकड़ी काट लेता हूँ, और कोयला बनाकर नगर में बेच आता हूँ परन्तु अब दो पेड़ ही शेष बचे हैं कृपया कोई दूसरी वाटिका हमें बताइए जिससे वहाँ जाकर मैं डेरा लगा सकूं!”
इतना सुनते ही राजा क्रोध से काँपने लगा और भील की मूर्खता पर बहुत ही ज्यादा दुखी हुआ.. राजा ने भील से कहा- “अरे मुर्ख! तुमने इस लाखों की संपत्ति का नाश कर दिया और अब दूसरी वाटिका की उम्मीद करते हो! तू जा और उसी जंगल में अपना जीवन यापन कर!”
भील बोला- “क्यों, क्या हुआ महाराज? मैंने क्या अपराध किया है? लकड़ियों को कोयले के सिवाय और किस कार्य में लाया जा सकता है?”
राजा ने कहा- “अच्छा! जाओ इस बचे हुए वृक्ष में से एक छोटी-सी लकड़ी काट लो और इसे बाजार में पंसारी के यहाँ बेच आओ!” भील बाजार में पहुंचा और पंसारी को एक छोटी-सी लकड़ी का टुकड़ा दिया. पंसारी ने लकड़ी के उचित दाम दिए… अब भील अपने पिछले किये हुए काम पर बहुत ज्यादा पछताने लगा. आज जरा-सी लकड़ी ने उसे एक दिन की पूरी कमाई उसके हाथ में रख दी थी और उसका समय भी बचा था!
भील रोनी सूरत लिए राजा के पास गया और उनके चरणों में गिरकर कहने लगा- “महाराज! कृपया मुझे क्षमा करें, मैंने स्वयं का नाश कर डाला.. अब क्या करूँ कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिये!”
राजा को उसके विलाप पर दया आ गई और उसने कहा- “ठीक है! तुमने जो मूर्खता की है उसे अब सुधार लो, बचे हुए वृक्षों से और वृक्ष बढाओ, खर्च के लिए थोड़ा-सा काट लिया करो और इसके ज्यादा पेड़ लगाते रहो थोड़े ही दिनों में फिर चन्दन की बगिया तैयार हो जायेगी…