कस्सप बुद्ध पालि परम्परा में परिगणित चौबीसवें बुद्ध थे । इनका जन्म सारनाथ के इसिपतन भगदाय में हुआ था, जहाँ गौतम बुद्ध ने वर्षों बाद अपना पहला उपदेश दिया था ।
काश्यप के धर्मपत्नी का नाम सुनन्दा था, तथा पुत्र का नाम विजितसेन। सम्बोधि के पूर्व उनकी धर्मपत्नी ने उन्हें खीर खिलाई थी और सोम नामक एक व्यक्ति ने आसने के लिए घास दिये थे। उनका बोधि-वृक्ष एक वट का पेड़ था। कस्सप बुद्ध ने अपना पहला उपदेश इसिपतन में दिया था। तिस्स और भारद्वाज उनके प्रमुख शिष्य थे तथा अतुला और उरुवेला उनकी प्रमुख शिष्याएँ । कस्सप का परिनिर्वाण काशी के सेतव्य उद्यान में हुआ था। फाह्यायान और ह्मवेनसाँग ने भी कस्सप बुद्ध के तीर्थस्थलों की चर्चा की है। संस्कृत परम्परा में कस्सप बुद्ध कश्यप बुद्ध के नाम से जाने जाते हैं।
कृपया ध्यान दें:
बुद्ध कभी भगवान, पुनर्जन्म और अवतार में विश्वास नहीं किया । बुद्ध की निर्वाण के वाद ही संगठित पुजारीवाद ने बौद्ध धर्म को अपभ्रंश और ध्वंस करने की शुरुआत कर दी थी । समय के साथ बौद्ध धर्म हीनजन(नीच लोग) और महाजन(महान लोग) में विभाजित कर दिया गया । उसके वाद ये विभाजित सेक्ट और भी टुकड़े होते चले गए । हीनयान को निम्न वर्ग(गरीबी) और महायान को उच्च वर्ग (अमीरी) भी कहा जाता है; हीनयान एक व्यक्त वादी धर्म था जिसका अर्थ कुछ जानकार “निम्न मार्ग” भी कहते हैं । हीनयान संप्रदाय के लोग बुद्ध की प्रमुख ज्ञानसम्पदा की परिवर्तन अथवा सुधार के विरोधी थे । यह बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों का ज्यों त्यों बनाए रखना चाहते थे । हीनयान संप्रदाय के सभी ग्रंथ पाली भाषा मे लिखे गए हैं । हीनयान बुद्ध जी की पूजा भगवान के रूप मे न करके बुद्ध जी को केवल बुद्धिजीवी, महापुरुष यानी इंसान ही मानते थे । हीनयान ही सिद्धार्था गौतम जी की असली शिक्षा थी । वैदिक वाले उनको विष्णु का अवतार बना के अपने मुर्तिबाद के छतरी के नीचे लाया और उनको भगवान बना के उनकी ब्योपारीकरण भी कर दिया । बुद्धिजीम असलियत में संगठित पुजारीवाद यानी ब्राह्मणवाद के शिकार होकर अपभ्रंश होता चला गया । हीनयान वाले मुर्तिको “बुद्धि” यानी “तर्क संगत सत्य ज्ञान” की प्रेरणा मानते हुए, यानी मूर्ति को केवल व्यक्तित्व की संज्ञान पैदा करने के लिए इस्तेमाल करते थे; इसीलिए मुर्ति के सामने मेडिटेसन यानी चित्त को स्थिर करने का योग अभ्यास करते थे; जब की ज्यादातर महायान वाले उनकी मूर्ति को भगवान मान के वैदिकों के जैसा पूजा करते हैं । महायान की ज्यादातर स्क्रिप्ट संस्कृत में लिखागया है यानी ये इस बात का सबूत है बुद्धिजीम की वैदिक करण की कोशिश की गयी । उसमे पुनः जन्म, अवतार, भगवान, देव, देवताओं, वैदिक भगवान जैसे इंद्र, ब्रम्हा, विष्णु, महेश्वर, स्वर्ग, नर्क, जैसे कांसेप्ट मिलाये गए और असली बुद्धिजीम को अपभ्रंस किया गया । जो भगवान को ही नहीं मानता वह अवतार को क्यों मानेगा? अगर अवतार में विश्वास नहीं तो वह क्यों पुनर्जन्म में विश्वास करेगा? महायान सिद्धार्था गौतम जी की यानी बुद्ध की विचार विरोधी आस्था है जिसको ब्राह्मणीकरण किया गया; बाद में ये दो हीनयान और महायान सखाओंसे अनेक बुद्धिजीम की साखायें बन गए और अब तरह तरह की बुद्धिजीम देखने को मिलते हैं जिसमें तंत्रयान एक है । तंत्रयान बाद में वज्रयान और सहजयान में विभाजित हुआ । जहां जहां बुद्धिजीम फैला था समय के साथ तरह तरह की सेक्ट बने जैसे तिबततियन बुद्धिजीम, जेन बुद्धिजीम इत्यादि इत्यादि । हीनयान संप्रदाय श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला हुआ है । अनुगामियों का मानना है इन देशों में फैली हीनयान अपभ्रंस नहीं है जो की गलत है । बाद में यह संप्रदाय दो भागों मे विभाजित हो गया- वैभाष्क एवं सौत्रान्तिक । बुद्ध ने अपने ज्ञान दिया था ना कि उनकी ज्ञान की बाजार । अगर आपको उनकी दर्शन अच्छे लगें आप उनकी सिद्धान्तों का अनुगामी बने ना की उनके नाम पे बना संगठित पहचान और उनके उपासना पद्धत्तियोंकी । आपका ये जानना जरूरी है, असली बुद्धिस्ट ज्ञान सम्पदा अपभ्रशं होकर उसमें तरह तरह की वैदिक सोच जैसे अवतार, पुनर्जन्म, भगवान, देव/ देवताओं, वैदिक भगवान जैसे इंद्र, ब्रम्हा, विष्णु, महेश्वर/रूद्र, स्वर्ग, नर्क, इत्यादि सोच घोलागया है और उस को सदियों अपभ्रशं करके असली बुद्ध शिक्षाओं को भ्रमित किया जारहा है, और बुद्धिजीम को वैदिक छतरी के नीचे लाने की कोशिश हमेशा हो रही है । अगर आपको कोई भी बुद्धिस्ट स्क्रिप्चर में भगवान, मूर्त्तिवाद, अवतार, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नर्क, चमत्कार, आलोकिक, भूत प्रेत, शैतान, जादू या काला जादू, हवन, वली, भोग/प्रसाद, व्रत, गंगा स्नान, छुआ छूत, अंधविश्वास, कुतर्क, हिंसा, अपराध, आस्था से जुड़ी सामाजिक बुराईयां इत्यादि इत्यादि जैसे वैदिक आस्था देखने को मिले आपको समझलेना होगा ये अपभ्रंस है । अगर ये सब आस्था बुद्ध को पसंद होता वह वैदिक दर्शन से अलग नहीं होते । बुद्ध के निर्वाण के वाद उनकी कही गयी सिक्ष्याओं को उनके अनुयायिओं के द्वारा संगृहीत कियागया था उन्हों ने कभी अपने हाथों में लिखित पाण्डुलिपि लिखकर नहीं गये थे जो उनकी लेख और शिक्षा का अपभ्रंस न हो पाये । महाजन सेक्ट बुद्ध की असली शिक्षा से अलग है और ये ज्यादातर ब्राह्मणी करण है जिसके ज्यादातर स्क्रिप्चर संस्कृत में ही मिलेंगे; जिसको वैदिकवादी छद्म बुद्धिस्ट सन्यासिओं ने हमेशा अपभ्रंस और नष्ट करते आ रहे हैं । मेत्रेयः भावी बुद्ध एक काल्पनिक चरित्र है जिसकी बुद्ध की सिक्ष्याओं से कोई सम्बद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के नाम पे धूर्त्तों के द्वारा फैलाई गई अफवाएं है, जैसे वैदिक वाले विष्णु की कल्कि अवतार के वारे अफवाएं फैलाई हुई है । बुद्ध के सिखाये गए अष्टांग मार्ग से कोई भी बुद्ध बन सकता है ।