उलटे सुलटे बचन के, सीस ना मानै दुख
कहै कबीर संसार मे, सो कहिये गुरु मुख।
गुरु के सही गलत कथन से शिष्य कभी दुखी नहीं होता है।
कबीर कहते है की वही शिष्य सच्चा गुरु मुख कहलाता है।
Ultey sultey bachan ke sis na manai dukh
Kahai Kabir sansar me,so kahiye Guru mukh.
One who never gets irritated by the right or wrong saying of a Guru
Know him to be a true disciple, so says Kabir.
कबीर कुत्ता हरि का, मोतिया मेरा नाव
डोरी लागी प्रेम की, जित खैंचे तित जाव।
कबीर कहते है की वे हरि का कुत्ता है। उनका नाम मोतिया है।
उन के गले में प्रेम की रस्सी बांधी गई है। उन्हें जिधर खींचा जाता है। वे उधर ही जाते है।
Kabir kutta Hari ka, motiya mera naw
Dori lagi prem ki, jit khainche tit jaw.
Kabir is God’s dog, call him Motia
Chained with love, the dog goes wherever he is pulled.
कबीर गुरु और साधु कु, शीश नबाबै जाये
कहै कबीर सो सेवका, महा परम पद पाये।
कबीर का कथन है की जो नित्य नियमतः गुरु और संत के चरणों में
सिर झुकाता है वही गुरु का सच्चा सेवक महान पद प्राप्त कर सकता है।
Kabir Guru aur sadhu ku sish nababai jaye
Kahai Kabir so sevaka,maha param pad paye.
One who bows his head daily to the Guru and saint
Such a devotee gets the most coveted position so says kabir.
कहै कबीर गुरु प्रेम बस, क्या नियरै क्या दूर
जाका चित जासो बसै, सो तिहि सदा हजूर।
कबीर के कहते है की जिसके हृदय में गुरु के प्रति प्रेम रहता है।
वह न तो कभी दूर न ही निकट होता है। जिसका मन चित्त जहाॅ लगा रहता है।
वह सर्वदा गुरु के समझ ही हाजिर रहता है।
Kahai Kabir Guru prem bas,kya nearai kya door
Jaka chit jason basai,so tihi sada hajoor.
When love for Guru resides in one’s heart, the Guru is never near or far
When mind is attached wherein, the Guru is always present before him.
गुरु आज्ञा मानै नहीं, चलै अटपटी चाल
लोक वेद दोनो गये, आगे सिर पर काल।
जो गुरु के आदेशों को नहीं मानता है और मनमाने ठंग से चलता है उसके दोनों लोक परलोक
व्यर्थ हो जाते है और भविश्य में काल मौत उसके सिर मंडराता रहता है।
Guru aagya manai nahi,chalai atpati chal
Lok ved dono gaye,aage sir par kal.
One who does not obey Guru’s orders and moves irregular
He neither gets this world nor the underworld, With death on his head he is bound to hell.
गुरु आज्ञा लै आबही, गुरु आज्ञा लै जाये
कहै कबीर सो संत प्रिया, बहु बिध अमृत पाये।
जो गुरु की आज्ञा से ही कहीं आता जाता है वह संतो का प्रिय होता है।
उसे अनेक प्रकार से अमृत की प्राप्ति होती है।
Guru aagya lai aabhi,Guru aagya lai jaye
Kahai Kabir so sant priya,bahu bidh amrit paye.
One who comes with Guru’s order and goes with Guru’s order
Says Kabir he is loved by saint and gets the nectar in many forms.
गुरुमुख गुरु आज्ञा चलै, छाड़ी देयी सब काम
कहै कबीर गुरुदेव को, तुरत करै प्रनाम।
गुरु का सच्चा शिष्य उनके आज्ञा के अनुसार ही सब काम को छोड़ कर चलता है।
कबीर कहते है की वह गुरुदेव देखकर तुरंत झुक कर प्रणाम करता है।
Gurumukh Guru aagya chalai,chhari deyee sab kam
Kahai Kabir Gurudev ko,turat karai parnam.
A devotee of Guru moves with the order of Guru leaving aside all other works
Says Kabir, he immediately bows down and salutes the Guru.
आस करै बैकुंठ की, दुरमति तीनो काल
सुक्र कही बलि ना करै, तातो गयो पताल।
स्वर्ग की आशा में उसकी दुष्ट बुद्धि से उसके तीनों समय नष्ट हो गये।
उसे गुरु शुक्राचार्य के आदेशों की अवहेलना के कारण नरक लोक जाना पड़ा।
Aas karai baikunth ki,durmati teeno kal.
Sukr kahi bali na kari,tato gayo patal.
Hoping for the heaven,he lost all the three eras
The king Bali did not do as was told by Guru Suk and went to hell.
अनराते सुख सोबना, राते निन्द ना आये
ज्यों जाल छुटि माछरि, तलफत रैन बिहाये।
प्रभु प्रेम से बिमुख नीन्द में सोते है परन्तु उन्हें रात में निश्चिन्तता की नीन्द नहीं आती है।
जल से बाहर मछली जिस तरह तड़पती रहती है उसी तरह उनकी रात भी तड़पती हुई बीतती है।
Anrate sukh sobana,rate nind na aaye
Jyon jal chhuti machhri,talfat rain bihaye.
Devoid of God’s pleasure he sleeps,but does not get proper sleep
As the fish is out of the water so does he spends the night in restlessness.
चतुर विवेेकी धीर मत, छिमावान, बुद्धिवान
आज्ञावान परमत लिया, मुदित प्रफुलित जान।
एक भक्त समझदार,विवेकी,स्थिर विचार,क्षमाशील,बुद्धिमान,आज्ञाकारी,ज्ञानी एंव मन से
सदा खुस रहने वाला होता है। ये सब भक्तके लक्षण है ।
Chatur viveki dhir mat,chhama ban,budhiban
Aagyaban parmat liya,mudit praffulit jan.
A devotee is wise,rational, grave, firm, forgiveful, intelligent
Obedient, knowledgeable and always happy and pleased.
तु तु करु तो निकट हैं, दुर दुर करु तो जाये
ज्यों हरि राखै त्यों रहे, जो देबै सो खाये।
यदि प्रभु बुलाते है तो मैं निकट आ जाता हूॅ। वे यदि दूर कहते है तो मैं बहुत दूर चला जाता हूॅं।
प्रभु को जिस प्रकार रखना होता है मैं वैसे ही रहता हूॅं। वे जो भी खाने को देते है मैं वही खा कर रहता हूॅं।
मैं प्रभु पर पूरी तरह निर्भर हूॅं।
Tu tu karu to nikat hain,dur dur karu to jaye
Jyon Hari rakhai tyon rahe,jo debai so khaye.
If He calls I come near,if he says to go, I go very far
As He keeps so I remain, what he gives I eat.
फल करन सेवा करै, निश दिन जाॅंचै हरि
कहै कबीर सेवक नहीं, चाहै चैगुन भरी ।
जो सेवक इच्छा पुर्ति के लिये सेवा करता है ईश्वर प्रतिदिन उसकी भक्ति की परीक्षा लेता है।
कबीर कहते है की वह सेवक नहीं है। वह तो अपनी सेवा के बदले चार गुणा कीमत वसुलना चाहता है।
Fal karan sewa karai,nish din janchai Hari
Kahai Kabir sewak nahi, chahai chaugun bhari.
One who is servicing for fruits, God tests him daily
Kabir says such a one is not a servant but a trader who wants four times price.
भोग मोक्ष मांगो नहि, भक्ति दान हरि देव
और नहि कछु चाहिये, निश दिन तेरी सेव।
प्रभु मैं आप से किसी प्रकार भोग या मोक्ष नही चाहता हॅू। मुझे आप भक्ति का दान देने की कृपा करैं।
मुझे अन्य किसी चीज की इच्छा नहीं है। केवल प्रतिदिन मैं आपकी सेवा करता रहूॅं।
Bhog moksh mango nahi,bhakti dan Hari dev
Aur nahi kachhu chahiye,nish din teri seb.
I do not demand pleasure or liberation, God grant me donation of devotion.
Nothing more I wish to have other than to give daily service to you.
येह मन ताको दिजिये, सांचा सेवक होये
सिर उपर आरा सहै, तौ ना दूजा होये।
यह मन उन्हें अर्पित करों जो प्रभु का सच्चा सेवक हो। अगर उसके सिर पर
आरा भी चले तब भी वह तुम्हें छोड़कर किसी अन्य की शरण में नहीं जाये।
Yeh man tako dijiye,sancha sewak hoye
Sir upar aara sahai,tau na dooja hoye.
Give this mind to one who becomes your true servant
Even if saw is running on his head, he does not change his master.
माधव को भावै नहीं,सो हमसो जनि होये
सदगुरु लाजय आपना, साधु ना मानये कोये।
हे प्रभु मैं कोई ऐसा काम नहीं करुॅं जो आपको अच्छा नहीं लगता हो। इस से प्रभु मेरे कारण
लज्जित होते है और मुझे भी कोई संत नहीं मान सकता है।
Madhab ko bhabai nahi,so humso jani hoye
Sadguru lajay aapna,sadhu na manai koye.
I should never do anything which is not liked by God
If God is ashamed, no body should regard me a saint.
साहिब के दरबार मे, कामी की नाहि
बंदा मौज ना पावही, चूक चाकरी माहि।
ईश्वर के दरवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं है। यदि मुझे उनकी कृपा नहीं प्राप्त हो रही है
तो मेरी सेवा में कोई कमी या खोट है।
Sahib ke darbar me,kami kahu ki nahi
Banda mauj na pabhi,chook chakri mahi.
There is no shortage of anything in the court of God
If I do not get his favour, the fault is in service of mine.
सब कुछ हरि के पास है, पाइये आपने भाग
सेवक मन सौंपै रहै, रहे चरन मे लाग।
भ्गवान के पास सब कुछ है। हम उनसे अपने हिस्से का पा सकते है।
भक्त सेवक अपना मन पुर्णरुपेन समर्पित कर उनके चरणों में आसक्ति रखें।
Sab kuchh Hari ke pas hai,paiye aapne bhag
Sewak man saupai rahai,rahe charan me lag.
God has everything with him,you can get your share
The servant should surrender his mind and remain attached to his feet.
सतगुरु शब्द उलंघि कर, जो सेवक कहु जाये
जहाॅ जाये तहाॅं काल है, कहै कबीर समुझाये।
प्रभु के वचतन को अनसुना कर यदि कोई भक्त सेवक कहीं अन्यत्र जाता है तो वह जहाॅ जायेगा-मृत्यु उसका
पीछा करेगा। कबीर इस तथ्य को समझा कर कहते है।
Satguru sabd ulanghi kar, jo sevak kahun jaye
Jahan jaye tahn kal hai,kahai Kabir samujhaye.
If by the violation of God’s words ,the servant goes anywhere
Whereever he will go,there is death, so says Kabir.
सेवक के बल बहुत है, सबको करत अधीन
देव दनुज नर नाग सब, जेते जगत प्रवीन।
प्रभु का सेवक बहुत शक्ति शाली होता है। वह सबको अपने अधीन कर लेता है।
देवता, आदमी, राक्षस,सांप इस विश्व के समस्त प्राणी उसके नियंत्रन मे हो जाते है।
Sevak ke bal bahut hai,sabko karat adhin
Dev danuj nar nag sab,jete jagat praveen.
The might of the servant is great, it binds everyone
The God, demon, man snake all in the world, come under his control.
सेवक फल मांगे नहीं, सेब करे दिन रात
कहै कबीर ता दास पर, काल करै नहि घात।
प्रभु का सेवक कुछ भी फल नहीं मांगता है। वह केवल दिन रात सेवा करता है।
कबीर का कहना है की उस दास पर मृत्यु या काल भी चोट या नुक्सान नहीं कर सकता है।
Sevak fal mange nahi,seb kare din rat
Kahai Kabir ta das par,kal karai nahi ghat.
The server never demands fruit,he serves day and night
Says Kabir on that servant,the death can never harm.
सेवक स्वामी ऐक मत, मत मे मत मिलि जाये
चतुरायी रीझै नहीं, रीझै मन के भाये।
जब तक स्वामी और सेवक का विचार मिलकर एक नहीं हो जाता है तब तक प्रभु किसी प्रकार की
बुद्धिमानी, चतुराई से प्रशन्न नहीं हाते है। वे तो केवल मन के समर्पण भाव से खुस होते है।
Sevak swami ek mat,mat me mat mili jaye
Chaturayee reejhay nahi,reejhay man ke bhaye.
If the views of the master and servant are one, both their views become one
He is not happy with cunningness but with the devotion of mind.
सेवक सेवा मे रहै, सेवक कहिये सोय
कहै कबीर सेवा बिना, सेवक कभी ना होय।
सेवक को सदा सेवा में रत रहना चाहिये। उसे ही सच्चा सेवक कहेंगे।
कबीर कहते है की सेवा किये बिना कोई सच्चा सेवक नहीं हो सकता है।
Sevak seva me rahai sevak kahiye soye
Kahai Kabir seva bina,sevak kabhi na hoye.
The server is firm in service, say him the real servant
Kabir says without the proper service,he can never become a servant.