एक़ दिन बीरबल को परेशान करने के उद्देश्य से बादशाह अकबर ने एक ऐसा आला बनवाया जिसमें हाथ डालने पर हाथ फस जाता था. उस आले में उन्होंने एक सेब रखवा दिया. आले वाला कमरा बादशाह के कमरे से मिला हुआ था. बीरबल जब बादशाह को मिलने आये तो बादशाह ने उन्हें हुक्म दिया कि बराबर वाले कमरे के आले में सेब रखा है उसे ले आओ.
बीरबल ने उस कमरे में जाकर आले में से सेब निकालने के लिए हाथ बढाया ही था कि उनका हाथ उसमें फस गया. दूसरा हाथ उस हाथ को निकालने में फस गया. थोडी देर में बादशाह वहां आये और बीरबल को चिढाने लगे बीरबल मन मारकर रह गये.
तब बादशाह ने अपने हाथों से उनके हाथ छुडवा दिये, बीरबल ने भी बादशाह को छकाने का उपाय सोचा, बीरबल ने तीर्थ यात्रा के बहाने बादशाह से छुटटी ले ली लेकिन गुप्त रूप् से अपने घर में ही रहने लगे. कपडे रंगकर साधुओं को वेष बना लिया. और चुपचाप दरबार की खबर लेते रहे. एक़ दिन बादशाह शिकार खेलने जंगल गये, बीरबल भी साधु के वेष में उनके पीछे हो लिए. बादशाह एक जंगली सुअर का पीछा करते-करते रास्ता भूल गये.
शाम होने जा रही थी इसलिए बादशाह को हाजत हुई वे एक तालाब के पास पखाने के लिए बैठ गये, थोडी देर बाद उन्होंने एक विक्राल दैत्य बाल बिखेरे और आंखे फैलाये अपनी और आते देखा उसे देखकर बादशाह भयभीत हो गये और हाथ जोडकर उसके सामने खडे हो गये.
दैत्य ने कढकर कहा – अपनी प्रजा पर जूर्म ढहाता है ? मैं आज तुझे नहीं छोडूंगा. यह सुनकर बादशाह गिडगिडाते हुए बोले – है भगवान! इस बार मुझे क्षमा करो. अब आपकी आज्ञा से कभी अत्याचार नहीं करूंगा.
तब दैत्य ने कहा अच्छा माफ किया. अब अत्याचार मत करना. तु अपने सिर पर अपना जूता रखकर सीधा महल की ओर चल. जैसे-तैसे डरते हुए बादशाह महल में आ गये और बडी उदारता के साथ महल का काम करने लगे. लेकिन उस दैत्य की याद वे अपने मन से न भूला सके.
उन्हीं दिनों बादशाह ने सुना कि बीरबल तीर्थ यात्रा से लौट आये हैं तो उन्होंने एक नौकर द्वारा उन्हें बुलावा भेजा. बीरबल जब सभा-भवन में पहूंचे तो सभी दरबारी उपस्थित थै. हाल-चाल पूछने के बाद बादशाह ने फिर वही बात कही “क्यों बीरबल आले का सेब” दरबारी कुछ न समझ सके तभी बीरबल बोले – “और वह देव” यह सुनकर बादशाह लज्जित होकर चुप हो गये. उन्होंने फिर बीरबल को कभी नहीं चिढायां. बादशाह को उस दैत्य का रहस्य और बीरबल की चालाकी मालूम हो गयी थी।