Category - शिक्षाप्रद कहानियाँ

चाणक्य नीति : पन्द्रहवां अध्याय

1. वह व्यक्ति जिसका ह्रदय हर प्राणी मात्र के प्रति करुणा से पिघलता है. उसे जरुरत क्या है किसी ज्ञान की, मुक्ति की, सर के ऊपर जटाजूट रखने की और अपने शारीर पर राख मलने की. 2. काँटों से और दुष्ट लोगो से बचने के दो उपाय है. पैर में पदत्राण(जुते) पहनो और उन्हें इतना शर्मसार करो की वो अपना सर उठा ना सके...

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चाणक्य नीति : चौदहवां अध्याय

1. गरीबी, दुःख और एक बंदी का जीवन यह सब व्यक्ति के किए हुए कर्म का ही फल है. 2. आप दौलत, मित्र, पत्नी और राज्य गवाकर वापस पा सकते है लेकिन यदि आप अपनी काया गवा देते है तो वापस नहीं मिलेगी. 3. यदि हम बड़ी संख्या में एकत्र हो जाए तो दुश्मन को हरा सकते है. उसी प्रकार जैसे घास के तिनके एक दुसरे के साथ...

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चाणक्य नीति : तेरहवां अध्याय

1. यदि आदमी एक पल के लिए भी जिए तो भी उस पल को वह शुभ कर्म करने में खर्च करे. जो आदमी दुख का कारण बने उसकी हजारों साल जीना भी व्यर्थ है. 2. हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है. 3. जो व्यक्ति अपने घर के लोगो से बहोत...

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चाणक्य नीति : बारहवां अध्याय

1. वह एक धन्य गृहस्थ है जिसके घर में एक आनंदमय माहौल है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी जरूरते पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. 2. वे लोग जो इस...

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चाणक्य नीति : ग्यारहवां अध्याय

1. उदारता, वचनों में मधुरता, साहस, आचरण में विवेक ये बाते एक अच्छा व्यक्तित्व की पहचान होनी चाहिए. 2. जो अपने अच्छी समाज को छोड़कर दुसरे की गलत समाज को जा मिलता है, वह उसी राजा की तरह नष्ट हो जाता है जो अधर्म के मार्ग पर चलता है. 3. हाथी का शरीर कितना विशाल है लेकिन एक छोटे से अंकुश से नियंत्रित हो...

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चाणक्य नीति : दसवां अध्याय

1. जिसके पास धन नहीं है पर ज्ञान और बुद्धि है उस को निर्धन और गरीब कहा नहीं जा सकता, लेकिन जिसके पास विद्या और बुद्धि नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है. 2. हम अपना हर कदम फूक फूक कर रखे. हम छाना हुआ जल पिए. हम वही बात बोले जो तार्किक है. हम वही काम करे जिसके बारे हम सावधानीपुर्वक सोच चुके है. 3...

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चाणक्य नीति : नवां अध्याय

1. यदि तुम पाप के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो. इन सब को छोड़कर सहनशीलता, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य का अमृत पियो. 2. वो शातिर बेईमान लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को...

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चाणक्य नीति : आठवां अध्याय

1. गरीब वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन अमीर वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही अमीर लोगो की असली दौलत है. 2. दीपक अँधेरे का भक्षण करता है इसीलिए काला धुआ बनाता है.  इसी प्रकार हम जिस प्रकार का अन्न खाते है माने सात्विक, राजसिक, तामसिक उसी प्रकार के विचार...

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चाणक्य नीति : सातवां ध्याय

1. एक बुद्धिमान व्यक्ति को निम्नलिखित बातें किसी को नहीं बतानी चाहिए .. १. की उसकी दौलत खो चुकी है. २. उसे क्रोध आ गया है. ३. उसकी पत्नी ने जो गलत व्यवहार किया. ४. लोगो ने उसे जो गालिया दी. ५. वह किस प्रकार बेइज्जत हुआ है. 2. जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम...

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चाणक्य नीति : छठवां अध्याय

1. सत कर्मों की वाणी सुनने और उस को समझने से, द्वेष दूर होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और भौतिक आसक्ति से मुक्ति होती है. 2. पक्षीयों में कौवा नीच है. पशुओ में कुत्ता नीच है. जो तपस्वी पाप करता है वो घिनौना है. लेकिन जो दूसरो की निंदा करता है वह सबसे बड़ा चांडाल है. 3. राख से घिसने पर पीतल...

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