परिस्थितियां दुःख का कारण नहीं है।

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असली कारण, जो हम नहीं करना चाहते उसके लिए हमेशा न्यायुक्त कारण खोज लेते है। और बेफिक्र हो जाते हैं । ऐसी कौन सी परिस्थिति हैं जिसमें आदमी शांत न हो सके ?

ऐसी कौन सी परिस्थिति हैं जिसमें आदमी प्रेमपूर्ण न हो सके ? ऐसी कौन सी परिस्थिति हें जिसमें आदमी थोडी देर के लिए मौन और शांति में प्रविष्ट न हो सके ? हर परिस्थिति में वह होना चाहे तो बिलकुल हो सकता है।

युनान में एक वजीर को उसके सम्राट ने फांसी की सजा दे दी थी, सुबह तक सब ठीक था । दोपहर वजीर के घर सिपाही आये और उन्होंने घर को चारों तरफ से घेर लिया और वजीर को जाकर खबर दी कि आप कैद कर लिये गये हैं और सम्राट की आज्ञा हैं कि आज शाम 6 बजे आपको फांसी दे दी जायेगी।

वजीर के घर उसके मित्र आये हुए थे, एक बडे भोजन का आयोजन था, वजीर का जन्मदिन था उस दिन । एक बडे संगीतज्ञ को बुलाया गया था । वह अभी-अभी अपनी वीणा लेकर हाजिर हुआ था।

अब उसका संगीत शुरू होने को था, संगीतज्ञ के हाथ ढीले पड गये। वीणा उसने एक ओर टिका दी, मित्र उदास हो गये, पत्नी रोने लगी । लेकिन उस वजीर ने कहा 6 बजने में अभी बहुत देर हैं तब तक गीत पूरा हो जायेगा तब तक भोजन भी पूरा हो जायेगा । राजा की बडी कृपा हैं कि 6 बजे तक कम से कम उसने फांसी नही दी।

लेकिन वीणा बंद क्यों हो गई ? भोज बंद क्यों हो गया ? मित्र उदास क्यों हो गये ? छः बज ने में अभी बहुत देर हैं । छः बजे तक कुछ भी बंद करने की कोई जरूरत नहीं । लेकिन मित्र कहने लगे अब हम भोजन कैंसे करें ? संगीतज्ञ कहने लगा अब मैं वीणा कैंसे बजाउं ? परिस्थिति बिलकुल अनुकुल नहीं रही।

वह आदमी हंसने लगा जिसको फांसी होने की थी, उसने कहा इससे अनुकुल परिस्थिति और क्या होगी ? छः बजे मैं मर जाउंगा क्या यह उचित न होगा कि उससे पहले मैं संगीत सुन लूं, उससे पहले मैं अपने मित्रों के संग हंस लूं , बोल लूं, मिल लूं? क्या यह उचित न होगा कि मेरा घर एक उत्सव का स्थान बन जायें, क्योंकि शाम छः बजे मुझे हमेषा को विदा हो जाना है।

घर के लोग कहने लगे, परिस्थिति अब अनुकुल न रही कि अब कोई वीणा बजायें, परिस्थिति अनुकुल न रही कि अब कोई भोजन हो । लेकिन वह आदमी कहने लगा – *इससे अुनकुल परिस्थिति* और क्या होगी? जब छः बजे मुझे हमेशा के लिए विदा हो जाना हैं तो क्या यह उचित न होगा कि विदा होते क्षणों में मैं संगीत सुनु , क्या यह उचित न होगा कि मित्र उत्सव करें, क्या यह उचित न होगा कि मेरा घर एक उत्सव बन जायें, कि जाते क्षण में मेरी स्मृति में वे थोडे से पल टिके रह जायें जो मैंने अंतिम क्षण में विदाई के क्षण में अनुभव किये थे।

और उस घर में वीणा बजती रही और उस घर में भोजन चलता रहा, यदपि लोग उदास थे संगीतज्ञ उदास था लेकिन वह वजीर खुश था वह प्रसन्न था राजा को खबर मिली राजा देखने आया की वह वजीर पागल तो नहीं हैं और जब वह पहूंचा तो घर में वीणा बजती थी मेहमन इकट्ठे थे और राजा जब भीतर गया तो वजीर खुद भी आनन्दमग्न बैठा था |

तो उस राजा ने पुछा तूम पागल हो गये, हो। खबर नहीं मिली कि शाम 6 बजे मौंत तुम्हारी आ रही है। ? उसने कहा खबर मिल गयी, इसलिए आनन्द के उत्सव को हमने तीव्र कर दिया हैं उसे शिथिल करने का तो सवाल न था क्योंकि छः बजे तो मैं विदा हो जोउंगा, तो छः बजे तक आनन्द के उत्सव को हमने तीव्र कर दिया है। क्योंकि यह अंतिम विदा के क्षण स्मरण रह जायें।

राजा ने कहा- ऐसे आदमी को फांसी देना व्यर्थ हैं, जो आदमी जीना जानता है उसे मरने की सजा नहीं दी जा सकती। उसने कहा- सजा मैं वापस ले लेता हूं,। ऐस प्यारे आदमी को अपने हाथों से मारूं यह ठीक नहीं,।

जीवन में क्या अवसर हैं, क्या परिस्थिति हैं यह इस बात पर निर्भर नहीं होता कि परिस्थिति क्या है ? यह इस बात पर निर्भर होता हैं कि उस परिस्थिति को आप किस भांति लेते हैं ? किस Attitude में किस द्रष्टि से , तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी ऐसी परिस्थिति हो सकती हैं जो आपके जीवन में सुख-आनंद की तरफ जाने से आपको रोकती हो । आप ही अपने को रोकना चाहते हो तो बात दूसरी है। तब हर परिस्थिति रोक सकती है। और आपही अपने को न रोकना चाहते हो तो कोई ऐसी परिस्थिति न कभी थी और न कभी हो सकती है।

थोडा ध्यान से अपनी द्रष्टि को देखने की कोशिश करे। परिस्थिति को दोष मत देना थोडा ध्यान करना इस बात पर कि मेरा दृष्टिकोण परिस्थिति को समझने की मेरी वृत्ति, मेरी अप्रोच, मेरी पहूंच तो कही गलत नही है, कहीं मैं गलत ढंग से तो चीजों को नही ले रहा हूं। फिर आप पाएंगे की सुख दुःख सफलता असफलता सब कुछ आपके नजरिये पर निर्भर करती हैं अपनी
सोच बदलो, फिर आपको हार में भी जीत दिखेगी, दुःख में भी सुख दिखेगा |

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क्रमरहित सूची

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